हालाँकि मै तुम्हरा एक दोस्त तो अच्छा था
तुम्हारे दिल में किसी और का कब्ज़ा था
कोई आ के चुपके से तुम्हे बाँहों में ले ले
ये अधिकार किसी और को दे रक्खा था
तुमने मेरे बेतरतीब घर में कॉफी पी थी
वो झूठा मग बरसों बिन धुले संभाला था
तुम जब भी प्यार की बातें साझा करती
मै तेरी खुशी में खुश हो सुनता रहता था
अपनी नज़्मों अपने फ़साने में लिक्खा
मुक्कू जो जो भी तुमसे कहना चाहा था
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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