Pages

Monday, 9 November 2015

रात चांदनी बरसती रही

रात  चांदनी बरसती  रही 
रातरानी भी महकती रही 
वो आग जो बुझ चुकी थी 
अलाव बन,सुलगती  रही 
बिन आब की मछली  सा 
रह -२वह भी तड़पती रही 
रात इक तूफ़ान भी उट्ठा 
और बिजली कड़कती रही 
मुकेश मै और क्या बताऊँ
मुझपे क्या -२ बीतती रही 

मुकेश इलाहबदी ---------

No comments:

Post a Comment