रात चांदनी बरसती रही
रातरानी भी महकती रही
वो आग जो बुझ चुकी थी
अलाव बन,सुलगती रही
बिन आब की मछली सा
रह -२वह भी तड़पती रही
रात इक तूफ़ान भी उट्ठा
और बिजली कड़कती रही
मुकेश मै और क्या बताऊँ
मुझपे क्या -२ बीतती रही
मुकेश इलाहबदी ---------
रातरानी भी महकती रही
वो आग जो बुझ चुकी थी
अलाव बन,सुलगती रही
बिन आब की मछली सा
रह -२वह भी तड़पती रही
रात इक तूफ़ान भी उट्ठा
और बिजली कड़कती रही
मुकेश मै और क्या बताऊँ
मुझपे क्या -२ बीतती रही
मुकेश इलाहबदी ---------
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