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Thursday, 28 February 2013
गैरों से इस नाचीज़ का पूछा है हाल !
गैरों से इस नाचीज़ का पूछा है हाल !
उम्मीदे इकरार में जी रहा हूँ बहरहाल
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
बड़ी मुस्किल से तो हम किनारे आये हैं
बड़ी मुस्किल से तो हम किनारे आये हैं
नदी की धार को धता बता के आये हैं
सुबह से ही सूरज आग उगल रहा है
अपने बदन पे चन्दन लपेट के आये हैं
सूरत देख कर भरोसा करना ठीक नहीं
साधुओं के भेष मे लुटेरे भी आये हैं
अब चाँद से भी लपटें उठा करती हैं
मूकेश चाँदनी से ही बदन पे छाले आये हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------
नदी की धार को धता बता के आये हैं
सुबह से ही सूरज आग उगल रहा है
अपने बदन पे चन्दन लपेट के आये हैं
सूरत देख कर भरोसा करना ठीक नहीं
साधुओं के भेष मे लुटेरे भी आये हैं
अब चाँद से भी लपटें उठा करती हैं
मूकेश चाँदनी से ही बदन पे छाले आये हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------
Tuesday, 26 February 2013
तुम हमें पत्थर समझो शिकायत नहीं
तुम हमें पत्थर समझो शिकायत नहीं
सर झुकाऊँ किसी के आगे आदत नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
Monday, 25 February 2013
मौसम गुज़र गया , बरसात न हुई
मौसम गुज़र गया , बरसात न हुई
आसमा से ज़मी की मुलाक़ात न हुई
यूँ तो हम मिलते रहे रोज़ ब रोज़
दोस्ती की अपनी शुरुआत न हुई
जब दिन ढला आये, शाम ढले गए
साथ उनके कभी वसले रात न हुई
सिर्फ नज़रों ही नज़रों से बात हुई
अपनी कभी खातो किताबत न हुई
रूठने और मनाने की हसरत रही
हमें एक दूजे से शिकायत न हुई
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
न रस्ता सुझाई दे
न रस्ता सुझाई दे
न मंजिल दिखाई दे
जहां में शोर इतना
कुछ न सुनाई दे
जो सबसे बड़ा झूठा
सच्चे की दुहाई दे
जो गलत है नही
वह क्यूँ सफाई दे ?
खुदा इश्क वालों को
न लम्बी जुदाई दे
मुकेश इलाहाबादी ---
तुमने ज़ुल्फ़ को संवारा होगा
तुमने ज़ुल्फ़ को संवारा होगा
आइना भी मचल गया होगा
हवाएं भी तो मनचली ठहरी
लटों को बिखरा दिया होगा
दरीचे पे तुम्हे खड़ा देख कर
राही दर पे ठिठक गया होगा
फूल की रजामंदी थी तभी
भँवरे ने चुम्बन लिया होगा
न उम्मीद होकर ही उसने
तुमसे किनारा किया होगा
मुकेश इलाहाबादी --------
Monday, 18 February 2013
हाथो में प्यार की हिना रचाए बैठी है
हाथो में प्यार की हिना रचाए बैठी है
गोरी द्वार में रंगोली सजाये बैठी है
आसमानी आँचल में साजा के सितारे
माथे पे चाँद की बिंदिया लगाए बैठी है
आखों में जगमाते हुए उम्मीद के दिए
अधरों पे मधुर मुस्कान लिए बैठी है
सतरंगी चूड़ियों से भर भर के कलाई
हाथो में नेह के दीपक जलाए बैठी है
इंतज़ार का बदला भी तो लेगी गोरी
मन में कई झूठे उलाहने लिए बैठी है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
गैरों से इस नाचीज़ का पूछा है हाल
गैरों से इस नाचीज़ का पूछा है हाल
उम्मीदे इकरार मे जी रहा हूँ बहारहाल
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
कदमो तले आपके दिल बिछा दिया
कदमो तले आपके दिल बिछा दिया
आपकी नाज़ुकी का हमको ख़याल है
जानता हूँ है जो फूल मेरे हाथ मे
फूल वो अपने आपमे बेमिसाल है
मुकेश इलाहाबादी ------------------
कभी धुप में लेटे तो कभी छांह में बैठे
कभी धुप में लेटे तो कभी छांह में बैठे
वीरान सी दोपहर में यूँ अनमने बैठे
बालों में कभी बेवज़ह उंगलियाँ फिराई
फिर उनके ही ख्यालों में ऊंघते बैठे
आ रही रोशनी बादलों से छन छन के
ऐसी पीली पीली धुप में गुनगुने बैठ
जानी कब सरक गयी धुप दीवार से
सिमटती परछाईयों को देखते बैठे
जाने क्या चाहती हैं बेचैन निगाहें ?
कभी छज्जे पे खड़े कभी मुंडेर पे बैठे
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
वीरान सी दोपहर में यूँ अनमने बैठे
बालों में कभी बेवज़ह उंगलियाँ फिराई
फिर उनके ही ख्यालों में ऊंघते बैठे
आ रही रोशनी बादलों से छन छन के
ऐसी पीली पीली धुप में गुनगुने बैठ
जानी कब सरक गयी धुप दीवार से
सिमटती परछाईयों को देखते बैठे
जाने क्या चाहती हैं बेचैन निगाहें ?
कभी छज्जे पे खड़े कभी मुंडेर पे बैठे
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
तुम न आओगे मनाते रहे उम्रभर
तुम न आओगे मनाते रहे उम्रभर
बेवजह घर को सजाते रहे उम्रभर
जलाकर खाक किया अपना वजूद
घर अपने सूरज उगाते रहे उम्रभर
भर गया है कांटो से दामन मेरा
शायद कैक्टस उगाते रहे उम्रभर
थी पास मे हमारे दौलते मुहब्बत
उसे भी खुलके लुटाते रहे उम्रभर
रेत पे लिखते रहे तेरा नाम फिर
लिख लिख के मिटाते रहे उम्रभर
हर रात हमे मिलती रही अमावश
रुठा हुया चॉद मनाते रहे उम्रभर
मुकेश इलाहाबादी --------------------
ं
Monday, 11 February 2013
पतझड़ ने छीन ली, सारी जवानियाँ,
पतझड़ ने छीन ली, सारी जवानियाँ,
दरख़्त पे रह गयी, फक्त सूखे डालियाँ
कांपती हैं कलियाँ, अब गुलफरोश से,
जाने कब बिक जाए, उनकी शोखियाँ
चराग़ भी बिक गए, अंधेरों के हाथ मे,,
रोशनी दिखायेगी, बादल की बिजलियाँ
ख़त तुम्हारे सारे ,करके आग के हवाले
यूँ हमने मिटा दी , सारी निशानियाँ
कागजी फूल खिला के, सोचते हैं लोग
गुलशन में उनके, उडेंगी तितलियाँ
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
Monday, 4 February 2013
वे अकेले नहीं हैं
वे अकेले नहीं हैं
शहर मे
साथ है उनके
चिरई, चुनगुन और यह खाली आकाश
वे अकेले नहीं हैं
कतई, काम के वक़्त भी
साथ है उनके
छेनी, हथौड़ी, मशीनों की खातर पटर
और उनके साथ की दर्जनों उदास आखें
वे अकेले नहीं हैं
ख्यालों में भी
साथ है उनके
दिहाड़ी का हिसाब
या पी ऍफ़ व ग्रेचुटी का कैल्कुलेसन
वे अकेले नहीं हैं
दडबे नुमा घर में भी
साथ है उनके
चूल्हे पे खदबदाती दाल और
बेहद काली लम्बी रात
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
शहर मे
साथ है उनके
चिरई, चुनगुन और यह खाली आकाश
वे अकेले नहीं हैं
कतई, काम के वक़्त भी
साथ है उनके
छेनी, हथौड़ी, मशीनों की खातर पटर
और उनके साथ की दर्जनों उदास आखें
वे अकेले नहीं हैं
ख्यालों में भी
साथ है उनके
दिहाड़ी का हिसाब
या पी ऍफ़ व ग्रेचुटी का कैल्कुलेसन
वे अकेले नहीं हैं
दडबे नुमा घर में भी
साथ है उनके
चूल्हे पे खदबदाती दाल और
बेहद काली लम्बी रात
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
सूरज के शहर में नंगे पाँव चलते रहे
सूरज के शहर में नंगे पाँव चलते रहे
आग ही पीते रहे आग ही उगलते रहे
कभी गर्दो गुबार कभी वक़्त के थपेड़े
सफरे जीस्त में जाने क्या - 2 सहते रहे
किस्मत अपनी सर्द गरीब की चादर रही
हम कभी सर तो कभी पैर को ढंकते रहे ----
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
आग ही पीते रहे आग ही उगलते रहे
कभी गर्दो गुबार कभी वक़्त के थपेड़े
सफरे जीस्त में जाने क्या - 2 सहते रहे
किस्मत अपनी सर्द गरीब की चादर रही
हम कभी सर तो कभी पैर को ढंकते रहे ----
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
सच के साथ क्या हो गए
सच के साथ क्या हो गए
काफिले से जुदा हो गए
जिन पत्थरों को तरसा उम्र भर
वो बुत आज हमारे खुदा हो गए
काफिले से जुदा हो गए
जिन पत्थरों को तरसा उम्र भर
वो बुत आज हमारे खुदा हो गए
मुकेश इलाहाबादी -------------
ज़िन्दगी बेमजा हो गयी,,
ज़िन्दगी बेमजा हो गयी,,
सिर्फ सज़ा ही सज़ा हो गयी
रूठ के तुम चले गए हो , ,,
मुझसे क्या खता हो गयी ?
अब तो तारे भी उदास हैं ,,
चांदनी जो लापता हो गयी
ज़माना तो रूठा ही था ,,,,
मौत भी खफा हो गयी .....
ओढ़ ली अँधेरे की चादर ,,
रोशनी तो बेवफा हो गयी
देख कर कांटो का तेवर ,,
कली खौफज़दा हो गयी ..
शब् भर मुस्कुराई रातरानी
सहर होते ही ग़मज़दा हो गयी
मुकेश इलाहाबादी -----------
सिर्फ सज़ा ही सज़ा हो गयी
रूठ के तुम चले गए हो , ,,
मुझसे क्या खता हो गयी ?
अब तो तारे भी उदास हैं ,,
चांदनी जो लापता हो गयी
ज़माना तो रूठा ही था ,,,,
मौत भी खफा हो गयी .....
ओढ़ ली अँधेरे की चादर ,,
रोशनी तो बेवफा हो गयी
देख कर कांटो का तेवर ,,
कली खौफज़दा हो गयी ..
शब् भर मुस्कुराई रातरानी
सहर होते ही ग़मज़दा हो गयी
मुकेश इलाहाबादी -----------
Saturday, 2 February 2013
बेचैनियाँ मेरी आप पढ़ लो
बेचैनियाँ मेरी आप पढ़ लो
बिस्तर की सिलवटों से
देख लो दिल मेरा गौर से
दर्द निहां है मुस्कुराहटों मे
अक्श देखता हूँ अक्शर अपना
तेरी आखों की परछाइयों मे
मुकेश इलाहाबादी -----------------