जिस दिन से तुमसे दूरी हुई
हर शाम अपनी अंगूरी हुई
आंगन हो कमरा हो दिल हो
मिलेगी हर चीज़ बिखरी हुई
रूह हो, जिस्म हो, दिल हो
मेरी हर चीज़ अब तेरी हुई
चाँद ने घूंघट कर लिया,लो
अपनी, तो रात अंधेरी हुई
तेरेही ख्यालों में उलझा था
इसी लिए आने में देरी हुई
मुकेश लड़ तो लूँ दुनिया से
ईश्क़ अपनी कमज़ोरी हुई
मुकेश इलाहाबादी ---------
हर शाम अपनी अंगूरी हुई
आंगन हो कमरा हो दिल हो
मिलेगी हर चीज़ बिखरी हुई
रूह हो, जिस्म हो, दिल हो
मेरी हर चीज़ अब तेरी हुई
चाँद ने घूंघट कर लिया,लो
अपनी, तो रात अंधेरी हुई
तेरेही ख्यालों में उलझा था
इसी लिए आने में देरी हुई
मुकेश लड़ तो लूँ दुनिया से
ईश्क़ अपनी कमज़ोरी हुई
मुकेश इलाहाबादी ---------