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Saturday 20 February 2021

दोस्ती भी हमी से दुश्मनी हमी से

 दोस्ती भी हमी से दुश्मनी हमी से

ख़फ़ा भी हमी से रजा भी हमी से
बात ईश्क़ की वो करती नहीं पर
हाँ जहान की बात करती हमी से
कभी फ़ूल सा महके है तो कभी
खुशबू बन के लिपटती हमी से
चाहत तो है खुल के मिले मगर
खुद को छुपा के रखती हमी से
अजब चाहत है उसकी ईश्क़ में
मौत भी चाहे ज़िंदगी भी हमी से
मुकेश इलाहाबादी -------------

अरसा हुआ अपने से बात नहीं होती

 अरसा हुआ अपने से बात नहीं होती 

खुद से खुद की मुलाकात नहीं होती 


हर वक़्त आफ़ताब दहकता रहता है 

ज़िंदगी के फलक पे रात नहीं होती 


आब की इक भी बूँद न पाओगे तुम 

सावन में भी यहाँ बरसात नहीं होती 


आँखों ही आँखों में बात हो जाती है 

हमारे बीच खतो किताबत नहीं होती 


जो कुछ भी हासिल सबमे में हूँ राजी 

ज़िंदगी से अपनी अदावत नहीं होती 


मुकेश इलाहाबादी --------------------


Tuesday 2 February 2021

सूरज जाने कहाँ जा डूबा है

 सूरज जाने कहाँ जा डूबा है

चार सू अंधेरा है अंधेरा है
हर तरफ़ तो है धुन्ध छाई हुई
फ़िज़ा मे कोहरा है कोहरा है
घर से निकल के कहाँ जाऊँ मैं
हर तरफ़ तो पहरा है पहरा है
करके दिन भर आवारगी भौंरा
तुझ गुलाब पे ठहरा है ठहरा है
मैं तेरी आँखों मे डूब जाऊंगा
ये समंदर तो गहरा है गहरा है
मुकेश इलाहाबादी,,,

फलक तक उड़ कर गया

 फलक तक उड़ कर गया

चाँद हया से छुप गया
वो तितली बन के आयी
मै फूल बन खिल गया
साथ तो दूर तक का था
बीच राह में वो मुड़ गया
इश्क़ में था तो दरिया था
मुद्द्त हुई बर्फ बन गया
जो लोहा कुदाल में था वो
आज तमंचे में ढल गया
मुकेश इलाहाबादी -----

ओ, मेरी चिड़िया

 ओ !

मेरी सुमी
ओ, मेरी चिड़िया
मुझे मालूम है
तुमने अपने जिन अंडे बच्चों को
अपनी चोंच से दाना -पानी खिलाया है
अपने नाज़ुक डैनो में जिन्हे सेया है
वे चूजे
खुले आसमान में बेख़ौफ़ उड़ने लगे होंगे
कुछ अपने अपने घोसले बना शिफ्ट हो गए होंगे
जो नहीं हुए होंगे वे भी
इस लायक होंगे कि
नीले आसमान में बिन तुम्हारे सहारे उड़ रहे होंगे
तुम्हारा "चिड़ा" भी
अपने ऑफिस या काम में व्यस्त रहता होगा
लिहाज़ा अब तुम
सब के लिए लगभग फालतू सी चीज़ हो गयी होगी
जिसे सिर्फ और सिर्फ काम के वक़्त याद किया जाता होगा
और
ऐसे में
तुम्हारे अंदर घर के कामो से फुर्सत पाते ही
एक उदासी
एक खाली पन का बरगद अपनी जड़ें फैला के
छतनार सा तन जाता होगा
जिसपे यादों की चिड़ियाँ चहचहाने लगती होंगी
जिन्हे कई बार सुना अनसुना कर के
एक बी पे मेरी पोस्ट पढ़ती होगी
बहुत कुछ सोचती होगी
हाँ या न के झूले में झूलती होगी
सिर्फ और सिर्फ
एक लाइक या कमेंट करने के लिए
मेरी कविता या पोस्ट पढ़ने के बाद
कई बार कुछ सोचते हुए
कई बार यूँ ही
मेरी पोस्ट को पढ़ती हो और
स्क्रॉल कर के आगे बढ़ जाती हो
ठीक उसी तरह
जैसे
आज से ढाई दशक पहले
उस दिन तुम
चाह के भी बिना कुछ कहे आगे बढ़ गयी थी
जिस दिन तुमने
मेरी आँखों में पढ़ लिया था
एक अनलिखी कविता अपने लिए
खैर, मेरे लिए तो इतना ही काफी है
तुमने मेरी कविताओं को पढ़ा तो
महसूसा तो
भले ही आँखों में या
अब एक बी पे
बाकी तो मै तुम्हारे अनंत मौन से जान ही जाता हूँ
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
मुकेश इलाहाबादी -------------------------

आईना देख के निराश मत हुआ करो

 सुमी,

आईना देख के निराश मत हुआ करो
उम्र
के साथ साथ
तुम्हारे
इन स्याह बालों में
ये जो चाँदी सी झलकने लगी हैं न ?
ये तुम्हारे चाँद से चेहरे को
और भी खूबसूरत बना रही है
तुम्हारे
इन भरे - भरे गालों का
नमक और गमक किसे नहीं भायेगा ??
और तुम ये जो सोचती हो न
कि तुम्हारा वजन बढ़ गया है
तो ये भरा हुआ बदन
ये गुदाज़ बाहें ही तो हैं
जो तुम्हारी ख़ूबसूरती को
और और बढ़ा रही हैं
सच
कई बार मुझे तो
पूरे चाँद से ज़्यादा ये
ढलता हुए अधूरा चाँद
ज़्यादा भाता है
वैसे भी
इस अधूरे चाँद का
स्याह हिस्सा तो मै हूँ न ??
देखो मेरी बातों से तुम
हँसना नहीं मुस्कुराना नहीं
ओ मेरी सुमी
ओ मेरी चाँद
सुन रही हो न ???
मुकेश इलाहाबादी -------

कहते हैं लोग तू मुस्कराता ही नहीं

 कहते हैं लोग तू मुस्कराता ही नहीं

क्या करूँ मर्ज़ दिल का जाता ही नहीं
क़ैद हो के रह गया हूँ तन्हाइयों मे
अर्सा हुआ कहीं आता जाता ही नहीं
लिखता हूँ ख़त मे जाँ निकाल के
बे मुरव्वत का जबाव आता ही नहीं
रहता हूं हर वक़्त इश्क के नशे मे
मुकेश है कि होश मे आता ही नहीं
मुकेश इलाहाबादी,,,,

हालाँकि मै तुम्हरा एक दोस्त तो अच्छा था

 हालाँकि मै तुम्हरा एक दोस्त तो अच्छा था

तुम्हारे दिल में किसी और का कब्ज़ा था
कोई आ के चुपके से तुम्हे बाँहों में ले ले
ये अधिकार किसी और को दे रक्खा था
तुमने मेरे बेतरतीब घर में कॉफी पी थी
वो झूठा मग बरसों बिन धुले संभाला था
तुम जब भी प्यार की बातें साझा करती
मै तेरी खुशी में खुश हो सुनता रहता था
अपनी नज़्मों अपने फ़साने में लिक्खा
मुक्कू जो जो भी तुमसे कहना चाहा था
मुकेश इलाहाबादी -------------------