Pages

Thursday 26 February 2015

छत सिर्फ छत नही होती

छत
सिर्फ चार दीवारों पे टिकी
सिर पे टंगी
सतह भर नही होती
छत हमे रहने की सहूलियत देती है
छत हमारे दुख दर्द को छुपाये रखने मे मदद देती है
छत हमे देती है
खुला आकाश
ताजी हवा
उगता और डूबता सूरज
बरसात की फुहारें
और,
जाडे की नर्म धूप
छत ही वो जगह है
जहां खडे हो कर हम अपने आस पास को देख पाते हैं
और अच्छी तरह से
छत वो जगह होती हैं
जो अक्सर रात कें अधेरे मे
भीड़ से अलग  जाकर
आसूं बहाने को जगह देती हैं
छत वा जगह होती हैं जहां हम दुख में तारे गिन कर रात काट देते हैं
छत ही अक्सर हमे अपने प्रेमी से मिलने की जगह और माहौल दिलाती हैं
छत ही तो हैं जहां हम अपने कपडे सुखाते हैं और भीगे बाल
छत ही हमें पतंगे उड़ने के लिए एक खूबसूरत जगह मुहैया कराती है
छत प्रेम के फलने फूलने और बढ़ने का अवसर भी देती है
छत ही तो वह जगह होती है
जहां हम अक्सर अपने घर का कबाड रख आते हैं
और भूल जाते हैं महीनो के लिये सालों के लिये
फिर भी छत उस कबाड को अपने सीने पे लादे  रहती हैं सालों साल
और हमसे कोई शिकायत नही करती
छत ही तो हैं जो हमे तमाम आंधी तुफान से बचा कर रखती हैं
और छते ही तो हैं जो हमे इज्ज्त आबरु देती हैं
नही विस्वास है तो उनसे पूछ कर देख लो
जिनके सिर पे छत नही होतीं
इसी लिये तो कहता हूं
छत सिर्फ छत नही होती

मुकेश इलाहाबादी --------------


दीवार सिर्फ दीवार होती है

चुपके से
बात सुनना अषोभन होता है
इसलिये कुछ लोग अपने कान उतारकर
दीवार से चिपका देते हैं
वर्ना,
दीवार के कान कहां होते हैं ?
दीवार के कान होता तो,
मुॅह भी होता
वर्ना वह बात सुनकर युंही खड़ी न रहती
निर्विकार
निषब्द
दीवार सिर्फ दीवार होती है
बाहर सह कर धूप पानी और बौछार
रखती है खुद को अंदर से चिकनी और चमकदार
ताकि हम रह सके शुकून और आराम से
दीवार कभी इंसान नही बनती
और न ही कभी उसने ख्वाहिश जाहिर की
जब कि इन्सान बन जाता है दीवार और
लगा लेता है कान
जो कि अषोभन होता है
दीवार सिर्फ दीवार होती है
दीवारों के कान नहीं होते
मुकेश इलाहाबादी -----------------

Sunday 22 February 2015

नकाब उसका उलट जाता तो

नकाब उसका उलट जाता तो
एक और चॉद निकल आता तो

मै मोम के पर ले कर उडा था
धूपकी आंच से पिघल जाता तो

मै कतरा के निकल आया वर्ना
मुस्कुराके हाथ वह मिलाता तो

अच्छा हुआ मै उससे नही मिला
जख्म फिर से हरा हो जाता तो

तुम फिर दरवाजा बंद कर लेते
मुकेश गर मै लौट भी आता तो

मुकेश इलाहाबादी .....................

Friday 20 February 2015

प्यार ही प्यार करूँ

प्यार  ही  प्यार  करूँ
तुझसे  इक़रार  करूँ

जब - जब  रूठो तुम
मिन्नतें सौ बार करूँ

हया  का परदा  हटा 
नज़रें  तो  चार  करूँ

ग़र बिछड़ूं तुझसे तो
आखें अश्कबार करूँ

तेरे सारे वायदे झूठे
फिरभी ऐतबार करूँ

मुकेश इलाहाबादी ---


Thursday 12 February 2015

वो पसे -दीवार बैठे हैं

वो पसे -दीवार बैठे हैं
ग़म में डूबे यार बैठे हैं

दौलत औ शोहरत के
हज़ारों बीमार बैठे हैं

आँख उठा के देखो तो
सारे गुनहगार बैठे हैं

तुम ही नहीं हो मियाँ
सभी होशियार बैठे हैं

महफ़िल में आओ तो
तेरे तलबगार बैठे हैं

मुकेश इलाहाबादी --

Saturday 7 February 2015

अश्कों को बहने दो

अश्कों को बहने दो
दर्द ऐ दिल सहने दो
दिल क्या कहता है
दिल की सुनने दो
हम तन्हा ही अच्छे
तनहा ही रहने दो

फुहार बन बरसेंगे
बदल बन घिरने दो

मुकेश हमको भी
कुछ तो कहने दो

मुकेश इलाहाबादी --

Friday 6 February 2015

वक़्त के साथ बदल रहे हैं

वक़्त के साथ बदल रहे हैं
हम भी साँचे में ढल रहे हैं
है आराम कहाँ  मयस्सर
कि सुबो -शाम चल रहे हैं
तुमसे मिल कर ऐ-दोस्त 
मेरे अरमान मचल रहे हैं
सहरा था ये दिले गुलशन
गेंदा - गुलाब खिल रहे हैं
तुम भी तो कुछ बोलो भी
बहुत दिन बाद मिल रहे हैं

मुकेश इलाहाबादी ----------

Wednesday 4 February 2015

सावन की झड़ी सी

सावन की झड़ी सी
वो कुड़ी सांवली सी
सूरत व सीरत में
प्यारी सी भली सी
बातें हैं उसकी जैसे
मिस्री की डली सी
रंगत उसकी जैसे
जूही की कली सी
अजनबी शहर में
लगती अपनी सी

मुकेश इलाहाबादी -

जान की बाजी हमने यूँ ही नहीं लगाई थी

जान की बाजी हमने यूँ ही नहीं लगाई थी
हमें मालूम था दिल के सौदे सस्ते नहीं होते
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
--

सावन की झड़ी सी

सावन की झड़ी सी
वो कुड़ी सांवली सी
सूरत व सीरत में
प्यारी सी भली सी
बातें हैं उसकी जैसे
मिस्री की डली सी
रंगत उसकी जैसे
जूही की कली सी
अजनबी शहर में
लगती अपनी सी

मुकेश इलाहाबादी ---

Tuesday 3 February 2015

पी कर बहके नही

पी कर बहके नही
टूट के बिखरे नही
रिश्ते निभाया कियेे
चालाकी करते नही
खुशियॉ मिली जब
देर तक चहके नही

अक्सरहॉ ग़म अपने
किसी से कहते नही

गजल में मुकेश हम
बेवकूफी लिखते नही

मुकेश इलाहाबादी .....

चलो आओ पुल बनाया जाए

चलो आओ पुल बनाया जाए
दो किनारों को मिलाया जाए
तुम वहाँ ग़मज़दा मै यहाँ,आ
एक दूजे का ग़म बँटाया जाए
क्यूँ गुम सुम गुम सुम बैठे हो
कुछ दूर टहल ही आया जाए
ईश्क का पाठ सदा नया लगे
आओ फिर से दोहराया जाए
वही वही दिन वही वही बातें
इक दूजे को फिर सुनाया जाए
मुकेश इलाहाबादी ---------

दिल पे छपे कदमो के निशान बताते हैं

दिल पे छपे कदमो के निशान बताते हैं
रास्ता जान कोई दिल से गुज़र गया था
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

इतनी शिद्दत से तू मुझसे मिला न कर




इतनी शिद्दत से तू मुझसे मिला न कर
कि तुझसे बिछड़ूं तो मै रह भी  न पाऊँ
मुकेश इलाहाबादी ------------------------