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Monday 30 December 2019

कदम न बढ़ाओ तो सदियों का है

कदम न बढ़ाओ तो सदियों का है 
वैसे चंद कदमो का ही फासला है 

इक मुलाकात में ही अपने से लगे 
शायद जन्मो- जन्मो का रिस्ता है 

तुम्हारा चेहरा ताज़ा खिला गुलाब 
और जिस्म चन्दन सा महकता है  

जिस्म के खंडहर में तेरी यादों का 
कबूतर गुटरगूँ - गुटरगूँ करता है 

दरिया बर्फ हो रहे इस दिसम्बर में 
फिर मेरे सीने में क्या पिघलता है 

मुकेश इलाहाबादी ---------------







Sunday 29 December 2019

मै भी नाराज़ होऊँ कोई मुझे भी मनाये तो

मै भी नाराज़ होऊँ कोई मुझे भी मनाये तो
कोई लतीफ़ा सुनाए और मुझको हँसाए तो

बहुत सर्द मौसम है ये अलाव से न जाएगी
अपनी मुहब्बत का कोई अलाव जलाये तो

हमने तो अजनबियों को भी अपना बनाया
कोई शिद्दत से मुझको भी गले लगाए तो

मुद्दतों हुई तनहा बैठे हुए वीराने में,चाहत है
मुकेश कभी कोई मुझसे भी मिलने आये तो

मुकेश इलाहाबादी --------------------

हम अपनी ही धुन में जा रहे थे

हम अपनी ही धुन में जा रहे थे 
तुम्हारा ही नाम गुनगुना रहे थे 

तुम मुँह चिढ़ा के भाग गयी तो 
तेरी इस अदा पे मुस्कुरा रहे थे  

कागज़ पे बेतरतीब लकीरें नहीं 
तेरा नाम लिख के मिटा रहे थे 

लोग समझते रहे मुस्कुरा रहा हूँ 
दरअसल अपना ग़म छुपा रहे थे  

तेरी दोस्ती के लायक हो जाऊँ 
ख़ुद को इस क़ाबिल बना रहे थे 

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,

Monday 23 December 2019

मैंने, ऐतबार किया

मैंने,
ऐतबार किया
ख़ुद को
बर्बाद किया
दिल
का सूरज बुझा
दिन को
रात किया
जला
कर अपने को
ख़ुद को
अंगार किया
ईश्क़
ही ईश्क़ किया
गल्ती
बार बार किया
आराम
मैंने
मौत के
बाद किया
मुकेश इलाहाबादी ---

समंदर होने के लिए

सिर्फ 
बहुत सारी नदियों को 
ख़ुद में समाहित कर लेने भर से ही 
समंदर नहीं हो जाता कोई 

समंदर 
होने के लिए 
ख़ुदा को खारा होने के लिए 
तैयार होना पड़ता है 


समंदर होने के लिए 
अपने अंदर सिर्फ हीरे मोती ही नहीं 
सीप , घोंघे , शैवालों को भी समोना होता है 

समंदर होने के लिए 
अपने अंदर निर्विकार हो के 
रंग बिरंगी मछलियां ही नहीं 
मगरमच्छों और घड़ियालों को भी 
पनाह देना होता है 

समंदर होने के लिए 
कभी बेहद शांत और कभी 
तूफानी भी बनना पड़ता है 

समंदर होने के लिए 
अपने से बहुत दूर 
बहुत छोटे से चाँद के इशारे पे 
अपनी गंभीरता छोड़ 
चंचल भी होना पड़ता है 

समंदर होने के लिए 
बहुत बहुत अकेला भी होना होता है 

समंदर होना भी इतना आसान कहाँ होता है ?

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Friday 13 December 2019

ये पहले तो, कुछ देर धुँवा देंगे

ये पहले तो, कुछ देर धुँवा देंगे
तुम हवा देते रहो, सुलग उठेंगे

यादों के अलाव जलाये रखो ये,
हिज़्र की सर्द रातों में मज़ा देंगे

ये बारिश की बूंदो से कंहा बुझेंगे
अंगार चाहत के हैं खूब दहकेंगे 

तुम्हे जब भी फुर्सत मिले आना 
हम इंतज़ार की डेहरी पे मिलेंगे 

दिन भर के बाद शाखों पे बैठें हैं 
यादों के परिंदे देर तक चहकेंगे 

मुकेश इलाहाबादी -------------

Monday 9 December 2019

कभी उदास होता हूँ

एक
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जब
कभी उदास होता हूँ
तुम्हे याद कर लेता हूँ
और - मन
गुदगुदी से भर जाता है
दो
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जब कभी
उदास होता हूँ
सोचता हूँ
तुम्हे, और देखता हूँ खिड़की
दूर तक फ़ैली सन्नाटी सड़क को
बेवज़ह - देर तक
मुकेश इलाहाबादी -----------

तुम्हारे बारे में सोचना

एक
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तुम्हारे
बारे में सोचना
एक बेहद थके दिन के बाद
आराम से सोफे पे बैठ
एक कप गरमा गर्म चाय पीना है
दो
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तुम्हारे - बारे में सोचना
बेहद तपते हुए दिनों के बाद
हल्की - हल्की फुहार में भीगना है
तीन
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तुम्हारे
बारे में सोचना
लोहबान और चन्दन की
भीनी - भीनी खुशबू से तरबतर होना है
सच ! तुम्हारे बारे में सोचना
मेरा सब से प्यारा शगल है
मुकेश इलाहाबादी ----------

वो शख्श मुझे इस लिए अच्छा लगता है

वो शख्श मुझे इस लिए अच्छा लगता है 
कि मेरा दर्द वो बड़े एहतराम से सुनता है 

अपनों से तो ये चराग़ ही बेहतर निकला 
स्याह रातों में मेरे साथ - साथ जलता है 

रोशनदान में ये कबूतर की गुटरगूँ नहीं है 
सिर्फ यही तो है जो मुझसे बात करता है 

मुद्दत हुई दर्द से मैंने दोस्ती कर ली अबतो
मेरे लतीफों पे मेरा ज़ख्म- ज़ख्म हँसता है  

हर हाल में मुझको उदास देखने वाले लोग 
कहने लगे हैं मुकेश बड़ा बेशरम लड़का है 

मुकेश इलाहाबादी -----------------------