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Sunday 29 December 2019

हम अपनी ही धुन में जा रहे थे

हम अपनी ही धुन में जा रहे थे 
तुम्हारा ही नाम गुनगुना रहे थे 

तुम मुँह चिढ़ा के भाग गयी तो 
तेरी इस अदा पे मुस्कुरा रहे थे  

कागज़ पे बेतरतीब लकीरें नहीं 
तेरा नाम लिख के मिटा रहे थे 

लोग समझते रहे मुस्कुरा रहा हूँ 
दरअसल अपना ग़म छुपा रहे थे  

तेरी दोस्ती के लायक हो जाऊँ 
ख़ुद को इस क़ाबिल बना रहे थे 

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,

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