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Monday 30 November 2015

खिला ताज़ा गुलाब जैसे

खिला ताज़ा गुलाब  जैसे
तुमसे मिलके  लगा ऐसे
है लफ़्ज़े मुहब्बत ज़ुबाँ पे
मगर तुमसे कह दूँ कैसे?
तुमसे मिलने के पहले,,
जाने लोग मिले कैसे -२
अजनबी शहर में, सिर्फ 
तुम हमे लगे अपने जैसे
मुकेश इलाहाबादी -----

Sunday 29 November 2015

या तो दर्द की दवा दे

या  तो दर्द की दवा दे
वरना  ज़हर ही ला दे

मुझे नींद आ जाएगी
कोई तो लोरी सुना दे

बादल हो बरस जाओ
थोड़ी तो प्यास बुझा दे

या ख़ुदा अब तो मुझे
मेरे प्यार से मिला दे

रोज़ -२ याद आऊं मै
इससे बेहतर भुला दे

किताबे ज़ीस्त से  ही
तू  मेरा नाम मिटा दे

आज बहुत रोया हूँ मै
मुकेश तू आके हंसा दे

मुकेश इलाहाबादी ---

Friday 27 November 2015

नियाग्रा फाल बरसता हो जैसे

जब
तुम हंसती हो
दशों दिशाओं से
इंद्रधनुषी झरने
हज़ार हज़ार तरीके से
नियाग्रा फाल बरसता हो जैसे
तब,
सूखी चट्टानों सा
मेरा वज़ूद
तब्दील हो जाता है
एक हरी भरी घाटी में
जिसमे तुम्हारी
हंसी प्रतिध्वनित होती है
और मै,
सराबोर हो जाता हूँ
रूहानी नाद से
जैसे कोई योगी नहा लेता है
ध्यान में उतर के
अनाहत नाद की
मंदाकनी में

मुकेश इलाहाबादी ----

Monday 23 November 2015

चुम्बक

मेरे
लहू में
लोहा है, जो
तुम्हरी आँखों के
चुम्बक से
खींचा आता है
और तुमसे जुड़ जाना
चाहता है हमेशा हमेशा के लिए
जब तक कि
मेरे लहू में लोहा है
और
तुम्हारी आँखों में चुम्बक

मुकेश इलाहाबादी -----------

Sunday 22 November 2015

अपनी खामोशी में सुनता हूँ

सुमी ,
तुम
मानो या न मानो 
पर अक्शर मै, 
तुम्हे,
अपनी खामोशी में सुनता हूँ 
आहिस्ता - आहिस्ता 
जैसे नदी सुनती है 
हवा का बहना,
आहिस्ता - आहिस्ता 
या की नदी के पाल सुनते हैं 
लहरों का बहना
आहिस्ता आहिस्ता 
या कि कोई बच्चा 
सुनता है माँ की लोरियाँ 
आहिस्ता आहिस्ता 
और फिर सो जाता है 
रोते - रोते 
और फिर सपने में मुस्कुराता है 
कोई खूबसूरत सपना देख के 
जिसमे होती है 
कहानी की खूबसूरत राजकुमारी 
जिसे वो ले कर उड़ रहा होता है 
बादलों में - आहिस्ता आहिस्ता 
बस ऐसे ही 
तुम्हे याद करता हूँ 
और सुनता हूँ तुम्हारी हंसी 
जैसे बंज़र खेत सुनते हैं  
बादलों की बरसती बूंदों को 

बस कुछ  ऐसे ही 
तुम बरसती हो 
मुझमे आहिस्ता आहिस्ता 

मुकेश इलाहाबादी ------------

Friday 20 November 2015

तेरे प्यार का ही असर है

तेरे  प्यार का ही असर है 
मुझे नहीं,अपनी खबर है 
तू राहे ज़िंदगी में छाँह थी 
तुझ बिन धूप का सफर है  
अब कोई सुर सधता नहीं   
ज़िदंगी ग़ज़ल बे - बहर है 
किससे पूछू मै पता तेरा 
ये शहर अजनबी शहर है 
थोड़ा संभल - संभल चल 
प्यार इक कठिन डगर है 

मुकेश इलाहाबादी --------

Thursday 19 November 2015

कुछ भी तो, नहीं बदला है

कुछ भी तो,
नहीं बदला है
वही सुबह
वही शाम
वही मुंडेर पे
चहकती चिड़िया है
हवा की लय पे
ठुमकते वही पेड़ों की शाखें
यहां तक कि
वही कमरा
वही दीवारें
वही तन्हाई
वही सब कुछ
वहीं सब कुछ
फिर क्यूँ लगता है
सब कुछ बदल गया है
तुम्हारे जाने के बाद ?

मुकेश इलाहाबादी ---

Tuesday 17 November 2015

YARA O DILDARA LAGTA HAI


हमने, घर बाँट लिया

हमने,
घर बाँट लिया
दूकान बाँट ली
ज़मीन बाँट ली
यहाँ तक कि
समंदर भी बहुत हद तक
बाँट लिया ,
बस,
इक आसमान भर बाकी है

मुकेश इलाहाबादी ----------

Monday 9 November 2015

रात चांदनी बरसती रही

रात  चांदनी बरसती  रही 
रातरानी भी महकती रही 
वो आग जो बुझ चुकी थी 
अलाव बन,सुलगती  रही 
बिन आब की मछली  सा 
रह -२वह भी तड़पती रही 
रात इक तूफ़ान भी उट्ठा 
और बिजली कड़कती रही 
मुकेश मै और क्या बताऊँ
मुझपे क्या -२ बीतती रही 

मुकेश इलाहबदी ---------

यारा ओ दिलदारा लगता है

यारा ओ दिलदारा लगता है 
तू  मुझको प्यारा  लगता है 
है संग तेरे,  दुनिया ज़न्नत  
वर्ना संसार अधूरा लगता है 
अज़नबियों के इस शहर में 
सिर्फ तू ही अपना लगता है 
जब बात करे है खट मिट्ठी 
तू कच्चा अमिया लगता है  
कच्चे दूध सी  उज्वल हँसी 
सच तू बेहद सोणा लगता है 

मुकेश इलाहाबादी ---------

तुम, इंकार के जितने भी बहाने जानती हो

तुम, 
इंकार के
जितने भी बहाने जानती हो ,
उससे ज़्यादा 
मै प्यार के तरीके जानता हूँ 

मुकेश इलाहाबादी -----

दिल तो मेरा भी कई बार किया था

सुमी,
दिल तो मेरा भी
कई बार किया था
खरीदूं
चमेली के फूलों से गुंथी
वेणी
सजाऊँ,
तुम्हारे बालों में
और फिर
महक जाऊं तुम्हारे साथ मै  भी

खैर,,
छोड़ो  ये बताओ तुम कैसी हो ??
उम्मीद है ठीक ही होगी
फिलहाल मै  भी ठीक ही हूँ
अपनी तन्हाई में
अपनी खामोशी में
अपने आप में,

मुकेश इलाहाबादी ----------

Saturday 7 November 2015

अँधेरे के ख़िलाफ़

अँधेरे के ख़िलाफ़
लड़ते हुए
तलवार भांज - भांज कर
अपने को या
फिर अपनों को
ज़ख़्मी करने से बेहतर होता
सूरज का आवाहन करें

और अगर ऐसा नही करते हैं
देख लेना एक दिन हम
अँधेरे से लड़ लड़ कर
एक दिन अँधेरे में
विलीन हो कर
अंतहीन अँधेरे का हिस्सा हो जाएगे

(तब हमारे हाथ में कुछ भी न होगा
न तलवार भांजना और न सूरज लाना )

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

जी तो बहुत चाहे है मुकेश, किसी का हो जाऊं

जी तो बहुत चाहे है मुकेश, किसी का हो जाऊं
लफ़्ज़े वफ़ा है, कि किसी और का होने नहीं देता
मुकेश इलाहाबादी -------------

Tuesday 3 November 2015

आईना

आईना पोछ कर
कई -कई ऐंगल से
अपना चेहरा देखते हुए
गुनगुना रही होती है कोई प्रेम गीत है
तभी - अचानक माँ की आवाज़ सुन
हड़बड़ाहट में आईना वही छोड़
भागती है माँ के पास उसकी टहल सुनने
और,,  भूल जाती है 'प्रेम गीत'

साड़ी के पल्लू से
आईना साफ़ कर
देखती है- अपना चेहरा
लगाती है -
ठीक माथे के बीचों बीच
लाल गोल बिंदी
और भँवरे से झूमते
झुमके देख
भूल जाती है
दिन भर की थकन
महंगाई और आमदनी में संतुलन बिठाने की
ज़द्दो जहद
और गुनगुनाने लगती है -
प्रेम गीत

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

  

Monday 2 November 2015

सिर्फ , और सिर्फ धुँवा रह जाए इसके पहले

सारा आलम,
धुँआ - धुँआ हो जाये
इसके पहले
बचा लेना चाहता हूँ
थोड़ी से 'हवा'
पारदर्शी और स्वच्छ
जो बहुत ज़रूरी है
स्वांस लेने के लिए
ज़िंदा रहने के लिए

इसी तरह,
बचा लेना चाहता हूँ
नदियों और पोखरों में
थोड़ा ही सही,
पर स्वछ जल
थोड़ा सा आकाश (स्पेस)
थोड़ी सी आग (बगैर धुँआ)

मुकेश इलाहाबादी -------

Sunday 1 November 2015

एक सूनसान घाटी में

भुलाने की
तमाम कोशिशों के बावजूद
लौट आती हैं
तुम्हारी यादें
मुझ तक
हज़ारों हज़ार तरीके से
शायद मै
तब्दील हो चूका हूँ
एक गहरे अंधे कुँए
या फिर
एक सूनसान घाटी में
तुम्हारे जाने के बाद

मुकेश इलाहाबादी ---------