Pages

Friday 31 July 2020

दुआ सलाम तक ही सीमित रह जाते हैं


दुआ सलाम तक ही सीमित रह जाते हैं 
कुछ रिश्ते चाह कर भी नहीं बढ़ पाते हैं  

राह में या भीड़ में ही मुलाकात होती है 
आँख मिलती है और आगे बढ़ जाते हैं  

दिल जिन्हे उम्र भर के लिए चाहे है वे  
मिलते हैं और मिल के बिछड़ जाते हैं 

कुछ लोग चन्दन की सिफ़त रखते हैं  
वो खुशबू की तरह आते हैं चले जाते हैं 

कुछ ऐसे भी सितमगर होते हैं मुकेश 
हक़ीक़त में नहीं बस ख्यालों में आते हैं 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Tuesday 28 July 2020

पत्थर से इबादत कर रहा हूँ

पत्थर से इबादत कर रहा हूँ
पानी पे इबारत लिख रहा हूँ

जिनके हाथो में खंज़र हैं मै
उन्ही लोगों से मिल रहा हूँ

जानता हूँ आग का दरिया है
फिर भी नंगे पाँव चल रहा हूँ

तेरी यादें मेरे लिए मरहम हैं
अपने ज़ख्मो पे मल रहा हूँ

जिनके कान नहीं हैं मुकेश
उनसे शिकायत कर रहा हूँ

मुकेश इलाहाबादी ------------

Monday 27 July 2020

बैठक में बस हंगामा ही हंगामा हुआ

बैठक में बस हंगामा ही हंगामा हुआ
न ये फैसला हुआ न वो फैसला हुआ

बीमारी, गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी
नेताओं के लिए फक्त इक मुद्दा हुआ

कभी बाढ़ कभी सूखा अब ये कोरोना
चोरों बेईमानो के लिए तो मौका हुआ

इधर शहर में चुनाव का बिगुल बजा
उस तरफ हिन्दू- मुस्लिम दंगा हुआ

किसान की खुदकुशी कोइ खबर नहीं
साहेब की छींक का भी खूब चर्चा हुआ

मुकेश इलाहाबादी -----------------



Sunday 26 July 2020

फिर बेहया सी मुस्कुरा रही है हवा

फिर बेहया सी मुस्कुरा रही है हवा
कहीं तो आग लगा के आयी है हवा
बेला चम्पा चमेली गुलाब रातरानी
किसी गुलशन से हो के आयी है हवा
कानो में ये रस कौन घोल रहा शायद
बदन उसका छू के गुनगुना रही है हवा
आज हवा में तपन नहीं ठंडक सी है
शायद नदी से मिल के आयी है हवा
तू दुपट्टा अपना संभाल के रख गोरी
कई बार आँचल उड़ा ले जाती है हवा
मुकेश इलाहाबादी ---------------

मै ज़मी पे वो फ़लक पे टहलता है

मै ज़मी पे वो फ़लक पे टहलता है
चाँद मुझसे दूरी बना के चलता है

देखना चाहता हूँ उसे बेनकाब पर
शर्मो ह्या का घूंघट डाले रखता है

कभी छुपता कभी दिखता है पर 
चाँद मुझको ही छलिया कहता है

मैंने कहा मै तुझे प्यार करता हूँ
सुन के मुस्कुराता है चुप रहता है

चाँद से कहा कभी ज़मी पे तो आ
उसने कहा इंसानो से डर लगता है

मुकेश इलाहाबादी ----------------


Saturday 25 July 2020

कहीं आया भी नहीं कहीं गया भी नहीं

कहीं आया भी नहीं कहीं गया भी नहीं 
मुद्दत हुई हँसा भी नहीं रोया भी नहीं 

वक़्त ने मौका न दिया ऐसा भी नहीं 
मै तुझको भूल गया हूँ  ऐसा भी नहीं 

तेरे शहर आया था तुझसे ही मिलने 
मुझे यहाँ और कोइ काम था भी नहीं 

तुम्ही बेवज़ह रूठ जाते रहे हो हमसे 
हमने तो चाहा भी कुछ कहा भी नहीं 

ख़त मेरा ले के सिरहाने रख लिया 
ख़त को पढ़ा भी नहीं फाड़ा भी नहीं 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Wednesday 22 July 2020

लफ़्ज़ों की बँसूली से ख़ुद को छील रहा हूँ

लफ़्ज़ों की  बँसूली से ख़ुद को छील रहा हूँ 
नज़्म नहीं लिख रहा दरअसल चीख रहा हूँ 

मेरा घर छोड़ सारे शहर में बारिश-बारिश 
ऐ सितमगर देख फिर भी मै भीग रहा हूँ 

मुझे न संवार पाओगे बिखरा ही रहने दे 
वैसे भी तो तमाम उम्र बेतरतीब रहा हूँ 

मुझ जैसे औघड़ को कौन पास बैठता  
लिहाज़ा खुद ही ख़ुद के नज़दीक रहा हूँ 

ज़माना समझता है मुकेश बदल गया है 
मै भी नए ज़माने का चलन सीख रहा हूँ 


मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Tuesday 21 July 2020

कॉफी का मग लिए

कॉफी
का मग लिए
चुपचाप देख रहा हूँ
बॉलकनी से
बारिश में
भीगती हुई - छत
दीवार
मुंडेर
लम्बी सूनी सड़क
और सड़क के किनारे
खड़ा तनहा
गुलमोहर का पेड़
मुकेश इलाहाबादी ---------

आओ बारिश में थोड़ी सी शरारत करें

आओ बारिश में थोड़ी सी शरारत करें 
छप छप करते हुए कुछ दूर तक चलें 

वो देखो चिड़िया कैसे दुपक के बैठी है 
बस ऐसे ही हम तुम भी संग संग चलें 

कुछ दूरी पर इक वीरान सी पुलिया है 
वहां कुछ पल बैठें भीगें गपशप कर लें  

भीगे- भीगे फूल भीगी- भीगी कलियाँ 
खूबसूरत नज़ारे को आँखों में भर लें 

अपनी ये शतरंगी छतरी बंद कर लो 
अमृत सी बारिश की बूंदे महसूस लें 

मुकेश इलाहाबादी -------------------

Monday 20 July 2020

गुलाब भी तुझको सजदा करता है

गुलाब भी तुझको सजदा करता है
चाँद भी तेरे आगे फीका लगता है

तुम्हारे चेहरे पे गज़ब भोलापन है 
हंसी से बातों से शहद टपकता है 
aसुर्ख होठ गाल गुलाबी बाल स्याह   
ख़ुदा ने तुझको अनेको रंग दिया है 

तुम्हारे चेहरे पे कुछ तो आसमानी है
जमाना यूँ ही तो  नहीं परी कहता है 

तुम्हारा नाम मुक्कू से क्या जुड़ा है 
वो कुछ - कुछ मगरूर सा रहता है  

मुकेश इलाहाबादी --------------

Saturday 18 July 2020

सलीके से रास्ता बदल लिया उसने

सलीके से रास्ता बदल लिया उसने
ज़रा भी पता न लगने दिया उसने

ज़ुल्मो सितम की बातें क्या बताऊँ
संग मेरे क्या क्या न किया उसने

मै खुद को होशियार समझता था
बड़ी चालाकी से थोखा दिया उसने

हमने तो दोस्ती निभाई शिद्दत से
दोस्ती का अच्छा सिला दिया उसने

जो सोचता था जुदा हो के खुश होगा
सुना बिछड़ के शब भर पिया उसने

मुकेश इलाहाबादी -----------

Friday 17 July 2020

जिससे -जिससे यारी रही

जिससे -जिससे यारी रही 
उसी से दुश्मनी सारी रही 

मौत सगी न राजा न रंक 
न हमारी न तुम्हारी रही 

इश्क़ की मय क्या पी ली 
फिर उम्र भर ख़ुमारी रही 

दामन साफ़ सुथरा रक्खा 
यही अपनी हुशियारी रही 

तसल्ली इस बात की मुझे 
आज भी तेरी मेरी यारी है 

मुकेश इलाहाबादी -------

Thursday 16 July 2020

चेहरे पे खामोशी का परदा लगाए रखता है

चेहरे पे खामोशी का परदा लगाए रखता है 
वो दिल का अपने हर राज़ छुपाये रखता है 

इक तो चंचल चितवन दूजे मासूम आँखे 
ऊपर से ज़ुल्फ़ माथे पे छितराये रखता है 

खुश हो तो सारे जहान की बात करता है 
रूठ जाए तो महीनो मुँह फुलाए रखता है 

मुँह फट इतनी कि चले जाने को कह दे 
अक्सरहां पलक पांवड़े बिछाये रखता है 

डहलिया चंपा चमेली गुलाब रात रानी 
बातों से महफ़िल को महकाये रखता है 

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

बात दोनों तरफ हो तो मज़ा देता है

बात दोनों तरफ हो तो मज़ा देता है 
वर्ना इक तरफ़ा ईश्क़ सजा देता है 

रात वस्ल की हो या फिर हिज़्र की
ईश्क़ तो आँखों को रतजगा देता है 

ईश्क़जादों को जलने का नहो खौफ 
ईश्क़ इन्सा को परवाना बना देता है 

गोरा हो काला हो कि छोटा या बड़ा 
सच्चा ईश्क़ तो हरभेद मिटा देता है 

ख़ुदा से हो या फिर उसके बन्दे से 
ईश्क़ वो शै जो दीवाना बना देता है 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Tuesday 14 July 2020

कुछ तो भीतर है जल रहा है धीरे- धीरे

कुछ तो भीतर है जल रहा है धीरे- धीरे
कुछ तो मोम सा गल रहा है धीरे- धीरे

रह - रह सीने में दर्द की लहरें उठती हैं
कोई तो ज़ख्म है पल रहा है धीरे- धीरे

दिखता तो नहीं है कोइ भी मेरे सीने में
हौले - हौले कौन चल रहा है धीरे -धीरे

उधर चाँद की कलाएँ बढ़ रही धीरे-धीरे
इधर सीने में कुछ ढल रहा है धीरे-धीरे

तुम सही कह रहे हो तुम्हारी कलम से
जमा हुआ दर्द निकल रहा है धीरे-धीरे

मुकेश इलाहाबादी ------------------A

उसकी आँखों में इक उदास नदी देखी थी

उसकी आँखों में इक उदास नदी देखी थी
मैंने हंसी व गुदगुदी की नाव चला दी थी
बहुत देर तक हम नौका विहार करते रहे
पहले वो खामोश रही फिर मुस्कुराई थी
मै खुश था मैंने किसी के लबों पे हँसी दी
ये ख़शफ़हमी नहीं मेरी गलतफहमी थी
इक दिन उसकी आँखों में डूब कर देखा
वहां मेरी नहीं कोइ और सूरत तैरती थी
अब मेरी आखों में खारा समंदर बहता है
कलतक जहाँ मीठे पानी की इक नदी थी
मुकेश इलाहाबादी ------------------

मै तेरा नाम लिखता हूँ हथेली पे

मै तेरा नाम लिखता हूँ हथेली पे
अपने होंठ रख लेता हूँ हथेली पे

इक दिन बोसा लिया था तुमने
वही खुशबू सूंघता हूँ हथेली पे

अक्सर नजूमी पास जाता हूँ मै
क्या लिखा है पूछता हूँ हथेली पे

तुम्हारे रुखसार की वो गर्माहट
मै फिर -फिर ढूंढता हूँ हथेली पे

मुक्कू तंहाई उदासी और बेबसी
यही दौलत देखता हूँ हथेली पे

मुकेश इलाहाबादी -------------

ढंग का लतीफा न मिला मुस्कुराने को

ढंग का लतीफा न मिला मुस्कुराने को
न मिला आँखों का दरिया डूब जाने को

तर बतर हूँ पसीने से मगर चल रहा हूँ
छत या शज़र न मिला सिर छुपाने को

हर शख्स का अपना अपना किस्सा है
वक़्त किसके पास है सुनने सुनाने को

रख दिया है खोल के किताबे ज़ीस्त को
मेरे पास कोइ किस्सा नहीं छुपाने को

मुक्कू तुम संजीदा इंसान लगते हो क्या
बैठ जाऊं तुम्हारे पास वक़्त बिताने को

मुकेश इलाहाबादी -------------------

अँधेरे का मुँह और काला हो जाता है

अँधेरे का मुँह और काला हो जाता है
तू हंस देती है तो उजाला हो जाता है

बेवज़ह लोग अंगूरी की बात करते हैं
तू शर्बत भी छूतो ले हाला हो जाता है

हो कोई भी मुल्ला पंडित शेख फरीद
जो तुझको देखे मतवाला हो जाता है

बड़ी बात कहे न मुक्कू तेरे आने से
मन मंदिर दिल शिवाला हो जाता है

मुकेश इलाहाबादी ---------------

यूँ खुश तो मै हर हाल में रहा

यूँ खुश तो मै हर हाल में रहा
तू मेरा न हुआ मलाल ये रहा

दिल का ये परिंदा उड़ता कैसे
तेरी बातों के मै जाल में रहा

इक अरसा हुआ मुकेश ज़िंदा
मै अपनी खद्दो -खाल में रहा

मुकेश इलाहाबादी ---------

सलीके से रास्ता बदल लिया उसने


सलीके से रास्ता बदल लिया उसने
ज़रा भी पता न लगने दिया उसने

ज़ुल्मो सितम की बातें क्या बताऊँ
संग मेरे क्या क्या न किया उसने

मै खुद को होशियार समझता था
बड़ी चालाकी से थोखा दिया उसने

हमने  तो दोस्ती  निभाई शिद्दत से
दोस्ती का अच्छा सिला दिया उसने

जो सोचता था जुदा हो के खुश होगा 
सुना बिछड़ के शब भर पिया उसने

मुकेश इलाहाबादी -----------------

















Tuesday 7 July 2020

काश ! तुम्हारी यादें

काश !
तुम्हारी यादें
ख़त होतीं
जिन्हे लौटा सकता
ब्रेक अप के बाद
या की
व्हाट्स एप पे भेजे मेसज होतीं
जिन्हे डिलीट कर के
आँखे बंद कर के कुछ देर
चुप चाप बैठा जा सकता
या फिर
तुम्हारी यादें
कोई तुड़ा मुड़ा नोट
या रेज़गारी होती
जिसे किसी अलमारी या आले पे
रख भूल सकता
कम से कम कुछ दिनों या
कुछ वर्षों के लिए ही सही
मुकेश इलाहाबादी -------

कोई भी ज़ख्म भरते भरते भरता है

कोई भी ज़ख्म भरते भरते भरता है
किसी को भूलने में वक़्त लगता है

दिल का क्या छन्न से टूट जाता है
जिस्म को मरने में वक़्त लगता है 

अगर इंसान को खिलौना कहते हो
तो खिलौने में चाबी कौन भरता है

बर्फ और इंसान की सिफ़त एक सी
एक आग से दूसरा ग़म से गलता है

जब से इंसानियत वहसी हो गयी है
मुक्कू मुझे जानवर बेहतर लगता है

मुकेश इलाहाबादी -------------------




Monday 6 July 2020

पहले तो मेरी रूह में ख़ुद शामिल हुआ

पहले तो मेरी रूह में ख़ुद शामिल हुआ
फिर वो ख़ुद-ब -ख़ुद मुझसे हुआ जुदा
पहले पत्थर था शिद्दत से तराशा जिसे
मगरूर हो मुझी को कहता है मेरा ख़ुदा
जिसके साँस साँस को था दिल से सुना
उसी ने मेरी पुकार को किया अनसुना
टूट जाने का मुझको कोई ख़ौफ़ न था
कोई मगरूर न समझे इसी लिए झुका
रौशनी की कोई उम्मीद न कर मुकेश
मुद्दतों से हूँ एक चराग़ अब बुझा हुआ
मुकेश इलाहाबादी -------

रात सिसकने लगती हैं नींद चौंक जाती है

रात सिसकने लगती हैं नींद चौंक जाती है
यादें जब मुझे तेरे नाम की लोरी सुनाती है
अक्सर नींद से उठ कर टहलता हूँ फिर मै
देर तलक तुझे सोचता हूँ तब नींद आती है
बड़ी गुस्ताख़ है ज़माने की हवा भी मुकेश
रह - रह के बुझते अलाव को जला जाती है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

खेल, में ये तय था

खेल,
में ये तय था
रूई के फाहों जैसे बादलों को
छुआ जाए
मै, शातिर था बहाने से
तेरे गाल छू आया
मुकेश इलाहाबादी --------

एक शब्द चित्र ------------- हेयर क्लिप

एक शब्द चित्र
-------------
हेयर क्लिप
ठीक से कसे हुए बालों से
खिसक के तकिये में मुँह छिपा
आराम से लेटी है,
बाकी ज़ुल्फ़ें खुल के भी
किसी नागिन सा पसरी हैं - बिस्तर पे
और,
खूबसूरत बालों व
बड़े बड़े नयनों वाली अपने दोनों हाथ
कुहनी से मोड़ करवट लेटी सो रही है
अभी भी
सुबह की ताज़ी हवा में आराम से
उसकी सुंदर बंद पलकों
और होंठों पे
खूबसूरत मुस्कान तैर रही है
शायद सपने में अपने प्रिय को देख रही है
उसके घुटनो से मुड़े पैर
कमर में थोड़ा ऊपर सरक गए टॉप से
झाँकती गुलाबी कमर
वाओ - बादलों से सप्तमी का चाँद
पांवो और हाथ की उंगलियों की नेल पॉलिश
दिवाली पे जलाई लाल झालर
जल रही हो सुबह देर तक
एक अद्भुत सुखद दृश्य
खोया हूँ मै
देखते हुए उसके
गोरे गोरे गालों को
और कान के लबों से टंगे बुँदे
सोचता हूँ
एक गर्मा -गर्म चाय बना
उसके बगल में रख
हौले उसके कान के ठीक नीचे की
रोयें दार गर्दन पे
अपने होठों को गोल - गोल कर के रख दूँ
और फुसफुसा के कहूँ
उठो - सुमी : देखो सुबह हो गयी है,
और अभी तक तुम सोई हुई हो ??
मुकेश इलाहाबादी -----------------

चलो तुम भी अपने रस्ते लौट जाओ

चलो तुम भी अपने रस्ते लौट जाओ
मै भी वापस उसी रस्ते लौट जाता हूँ
ज़रूरी तो नहीं हर मुलाकात अंजाम तक पहुंचे
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

मै उसको हंसाता रहा खिलखिलाता रहा

मै उसको हंसाता रहा खिलखिलाता रहा
और वो मुझे फ़क़त जोकर समझता रहा
इश्क़ की बाज़ी में उसके लिए प्यादा था
उसकी अदाओं के मोहरों से पिटता रहा
उसने कहा था इक दिन मुलाकात करेंगे
फिर ता उम्र उसका इंतज़ार करता रहा
मुझे लगा उसकी आखों में मीठी नदी है
और मै प्यास को लिए दिए चलता रहा
उसने कहा मुझे शरारे अच्छे लगते हैं
मुकेश तब से मै सूरज सा दहकता रहा
मुकेश इलाहाबादी -------------------

मेरी कथा - कहानी में कोइ और नहीं


मेरी कथा - कहानी में कोइ और नहीं
अब इस ज़िंदगानी में कोइ और नहीं

कुछ कट गयी कुछ और कट जाएगी
ईश्क़ इस जवानी में कोइ और नहीं

हमारी ही सिसकियाँ सुनाई दी होगी
यहाँ  रात तूफ़ानी में कोइ और नहीं

मुकेश इलाहाबादी------------------