Pages

Sunday 26 July 2020

मै ज़मी पे वो फ़लक पे टहलता है

मै ज़मी पे वो फ़लक पे टहलता है
चाँद मुझसे दूरी बना के चलता है

देखना चाहता हूँ उसे बेनकाब पर
शर्मो ह्या का घूंघट डाले रखता है

कभी छुपता कभी दिखता है पर 
चाँद मुझको ही छलिया कहता है

मैंने कहा मै तुझे प्यार करता हूँ
सुन के मुस्कुराता है चुप रहता है

चाँद से कहा कभी ज़मी पे तो आ
उसने कहा इंसानो से डर लगता है

मुकेश इलाहाबादी ----------------


No comments:

Post a Comment