Pages

Wednesday 30 January 2019

जब से ईश्क़ हुआ है हम दोनों का

जब से ईश्क़ हुआ है हम दोनों का
तब से बहुत चर्चा है हम दोनों का

राहे ईश्क़ में कठिन दौर आए पर
हौसला बढ़ा चढ़ा है हम दोनों का

अब रात अपनी, दिन अपना और
सुःख  दुःख साझा है हम दोनों का

चाँद दुनिया का सूरज दुनिया का
टूटा हुआ सितारा है हम दोनों का

भले सारा ज़माना दुश्मन हुआ है
मुक्कु ख़ुदा हुआ है हम दोनों का

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

इश्क़ मे जीना इश्क़ मे मरना हुआ

इश्क़ मे जीना इश्क़ मे मरना हुआ
हमसे और कोई काम दूजा न हुआ

सूरज समंदर, चाँद बादलों में छुपा
मेरे घर किसी तरह उजाला न हुआ

रईसी कभी मुझको रास नहीं आई
औ ग़रीबी में अपना गुजरा न हुआ

तुम जिसके लिए मुझे छोड़ गए थे
आख़िरकार वो भी तुम्हारा न हुआ

हम तो सब के लिए जिए और मरे
लेकिन मुकेश कोई हमारा न हुआ


मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Tuesday 29 January 2019

टीन एजेर बेटे के मेसेज - मम्मी के लिए


एक
-----
मुझे,
मालूम है आप 
मेरी लापरवाहियां और बेतरतीबी की लिए
ऊपर ऊपर डांटते हुए भी
अंदर अंदर खुशी से और मेरे लिए प्रेम से भरपूर रहती हो

मेरे बिखरे हुए कपड़ों व किताबों को सहेजना अच्छा लगता है
पर यहाँ हॉस्टल में आ कर अब मुझे अपने कपडे खुद तह कर के रखना सीख लिया है
वहां तो आप सुबह ब्रश में टूथ पेस्ट भी आप लगा के देती थी
टोस्ट में मक्खन भी लगा के हाथ में पकड़ा देती थी
और प्यार भरी झिड़की से जल्दी से खाने की हिदायत देती थी
पर अब तो सुबह बिना आप की प्यार भरी झुड़की के
हॉस्टल के अलार्म पे उठना पड़ता है -
खुद से टॉवल बाथरूम में ले जाना होता है
और जल्दी जल्दी तैयार हो के
कैंटीन जा के नास्ता करना होता है
सच ! ऐसे में आई मिस यूं ब्रैडली
बट तुम उदास मत होना
मै ठीक हूँ
तुम्हारा

ब्रेवो

दो
--

मॉम ,
मै जानता हूँ
उस दिन हॉस्टल के लिए आप लोगों ने मुझे
सी ऑफ़ कर के रात -
दोपहर का बचा खुचा खा के सो गए होंगे
ताज़ा खाना न बनाया होगा
पापा भी चुप चाप न्यूज़ देखते देखते सोफे पे सो गए होंगे
घर में सन्नाटा रहा होगा
मै भी - हॉस्टल के सन्नाटे में आप को मेसेज कर रहा हूँ
आप कोइ अच्छी चीज़ इस लिए नहीं बनाती होंगी
क्यूँ कि मै आप  लोगों के साथ नहीं हूँ
कैंटीन का खाना अच्छा है - यु डोंट वरी
लव  यू मॉम

स्वीटी आए तो उसे मेरा पी सी मत छूने दीजियेगा
उमसे मैंने कुछ नए गेम्स डाउनलोड किए हैं
वो डिलेट कर देगी

तीन
-----

मॉम ,
मेरी साइंस की किताब में
पाँच सौ रखे हैं -जो बड़ी मौसी जाते हुए दे गयी थी
उसे काम वाली ऑन्टी को दे दीजियेगा
उनके बेटे के स्कूल के शूज़ फट गए हैं
वो नए खरीद देंगी उसे
रेस्ट इस ओके

हाँ !
मुझसे जब मिलने आइयेगा तो मुझे
"फुग्गा ' कह के मत बुलाइयेगा
मेरे दोस्त लोग हँसेंगे - घर पे चाहे जितना बोलियेगा
तुम्हरा फुग्गा

(हूँ मेरा रूम पार्टनर कम बोलता है - ठीक है - वैसे स्वभाव कैसा है
ये तो रहते रहते पता लगेगा )


चार
----

मेरे हॉस्टल के वार्डन सर कड़क हैं
क्लास टीचर सॉफ्ट हैं
मै दिल लगा के पढ़ रहा हूँ
बॉर्न वीटा रोज़ ले लेता हूँ
आई मिस यु
मॉम

(हाँ ! दिल में मेसेज मत करना मोबाइल सिर्फ सुबह और शाम
देख पाऊँगा - टेक केयर )

मुकेश इलाहाबादी -------

एक दिन मैंने सोचा

एक
दिन मैंने सोचा
क्यूँ न एक फेहरिश्त बनाऊँ
कि मुझे कौन कौन अच्छा लगता है ?
तो उस फेहरिश्त में
पहला नाम तुम्हारा था
और
आख़िरी नाम भी तुम्हारा था

सुमी ! सुन रही हो न ????

मुकेश इलाहाबादी -------

Monday 28 January 2019

जाने क्यूँ ??? --------------

सन्नाटा
होते ही तुम्हारी यादों के मंजीरे
बजने लगते हैं
सुर - लय के साथ
और मै डूब जाता हूँ
एक रूहानी सरगम में

साँझ
होते ही तुम्हारी यादों के फूल
खिलने लगते हैं
जिसकी महक और गमक से
महमहा उठती है - मेरी रात


मुकेश इलाहाबादी ------------

Sunday 27 January 2019

कभी दरिया तो कभी समंदर हो गयी आँखे

कभी दरिया तो कभी समंदर हो गयी आँखे
कभी ऐसा लगे है जैसे पत्थर हो गयी आँखे
अभी तक तो चल रहा था कारवां बदस्तूर
तुझको देखा जो बेनक़ाब ठहर गयी आँखे

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

Thursday 24 January 2019

ईश्क़ को हम लोगों ने मुल्तवी कर दिया है

ईश्क़
को हम लोगों ने मुल्तवी कर दिया है
अब ये आता है
हमारी ज़िंदगी में
किसी गजटेड हौली डे की तरह साल में दो या चार दिन
बस ! जब हम ऑफिस की आपा - धापी से
बच्चों की पेरेंट्स मीटिंग्स से
मोहल्ले और सोसाइटी के इंगेजमेंट्स से
हफ्ते भर के कपड़ों के गट्ठर को वाशिंग मशीन में धोने से
घर की साप्ताहिक सफाई और गाड़ी की सर्विसेज करने से फुर्सत होते हैं
लिहाज़ा अब हम गजटेड होली डे पे
कनॉट प्लेस पे घुमते हुए
पालिका बाज़ार की छत पे बैठ पेड़ों की झुरमुट में
आईस क्रीम या चुरमुरे खाते हुए
दो चार घंटे जी लेते हैं ईश्क़
किसी त्योहार की तरह
और रिचार्ज  हो जाते हैं अगले हौली डे तक के लिए
आपा - धापी के लिए

मुकेश इलाहाबादी --------------

वक़्त के चाक " पर

सुमी, जानती हो ?
एक ,
दिन तुम्हारी
यादों की सोंधी - सोंधी मिट्टी को
आँसुओं से गूँथ कर
रख दिया 'वक़्त के चाक " पर
गढ़ दिया एक दिया
बार दी हिज़्र की बाती
अब रौशन हैं तुम्हारे नाम से
मेरे ईश्क़ की लम्बी रात

मुकेश इलाहाबादी --------------

Wednesday 23 January 2019

सोचोगी भी और कुछ न बोलोगी

सोचोगी भी और कुछ न बोलोगी 
हाँ न के झूले में कब तक झूलोगी

तनहाई के गुप्प अँधेरे में छुपकर 
तुम कबतक चुपके चुपके रोओगी

आ जाओ हक़ीक़त की दुनिया में
यूँ सपनो में तुम कबतक डोलोगी

वक़्त अभी भी है आ जाओ वर्ना
रातों को मुझको तारों में ढूँढोगी 

मैंने तो कह दी है दिल की बातें
तुम दिल की गाँठे कब खोलोगी

मुकेश इलाहाबादी ---------------

Monday 21 January 2019

कुछ - कुछ मुझसे जुलती देखी थी

कुछ - कुछ  मुझसे जुलती देखी  थी
उसकी आँखों में इक तस्वीर देखी थी

दरिया में जैसे हौले- 2 आग जली हो 
कल इक लड़की भीगी भीगी देखी थी

थी चंचल चंचल शोख अदाएँ उसकी
पर जाने क्यूँ थोड़ा सहमी सहमी थी

मुझसे न कुछ बोली न कुछ बतियाई
फिर भी अपनी अपनी सी लगती थी

मुकेश इलाहाबादी ------------------ 

Sunday 20 January 2019

आईना, मुझे कुछ इस तरह देखता है

आईना,
मुझे कुछ इस तरह देखता है 
जैसे कोई
अजनबी रु ब रु होता है

हाले दिल
अपना ख़ुद से पूछता हूँ
व्यस्त शहर है
कौन किसको पूछता है

अजब रिवायतों का है
शहर अपना 
मुर्दा अपनी मैयत को
ख़ुद ढो रहा है

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Friday 18 January 2019

मेरे ज़ख्मो को बड़े गौर से देख रहा था

मेरे ज़ख्मो को बड़े गौर से देख रहा था
शायद नया ज़ख्म कहाँ दूँ सोच रहा था

तू मेरी दुश्मन है या फिर मेरी जानेजां
बैठा - बैठा इक दिन, यही सोच रहा था 

तू शुबो छत पे धूप सा बिखर गयी थी
जाड़े की दोपहर जब धूप सेंक रहा था 

आज फिर वही अजब इत्तेफ़ाक़ हुआ
तूने मेसज किया जब याद कर रहा था

सालों से  मेरे शहर में बारिश नहीं हुई
मै तेरी यादों में झमाझम भीग रहा था

मुकेश इलाहाबादी --------------------

मै, तो खुशबू का सफर हूँ


मै,
तो खुशबू का सफर हूँ
कभी - इस बाग़ में
तो कभी - उस बाग़ में रहूँगा
कहीं और न सही तो
तुम्हारी साँसों में
महकता रहूंगा

मुकेश इलाहाबादी ----------

Thursday 17 January 2019

दिलों की नज़दीकियाँ रहीं


दिलों की नज़दीकियाँ रहीं 
भले जिस्म की दूरियाँ रही 

सिर्फ अहसासों ने  बातें की   
दरम्याँ अपने चुप्पियाँ रही 

मेरी तमाम स्याह रातों में  
तेरे ख्वाबों की सुर्खियाँ रही 

जज़्बातों को कुरेदा न गया 
राख में दबी चिंगारियाँ रही 

तुम्हारे दिल की धड़कन नहीं 
साँसे सुनती सिसकियाँ रही 

मुकेश इलाहाबादी ----------

गर रातो दिन न सही दो चार पल तो गुज़ार

गर रातो दिन न सही दो चार पल तो गुज़ार 
बदन से अपने खामोशी का लबादा तो उतार

ईश्क़ में दुश्मनी बहुत देर अच्छी नहीं होती
आ कुछ देर बैठ हँस बोल गुस्सा तो बिसार

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

Tuesday 15 January 2019

कि बादलों को झूम झूम कर बरसता हुआ देखूँ

कि बादलों को झूम झूम कर बरसता हुआ देखूँ
तुझे गीले गेसुओं को छत पे झटकता हुआ देखूँ

सफर में ठाँव जो तेरी ज़ुल्फ़ों का मिले तो रुकूँ
वरना दर ब दर मै ख़ुद को भटकता हुआ देखूं

तेरे चेहरे पे उदासी हरगिज़ अच्छी नही लगती
दिले तमन्ना है तुझे हर दम हँसता हुआ देखूँ

मेरे सीने में बर्फ की सिल्ली सी जमी रहती है
तू आ के छू ले तो ख़ुद को पिघलता हुआ देखूँ

तेरे फूल से जिस्म  से हवाओं सा लिपट जाऊँ
फिर तेरी साँसों में अपने को महकता हुआ देखूँ

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

तुम हरगिज़ नहीं बदलोगी हमें मालूम है

तुम हरगिज़ नहीं बदलोगी हमें मालूम है
ये शर्मो हया नहीं छोड़ोगी  हमें मालूम है

शायद तुमने चुप रहने की कसम खा ली
पूछता रहूंगा नहीं बोलोगी हमें मालूम है 

बुलाता रहूंगा तुम नहीं आओगी मिलने
बाद अकेले में रोती रहोगी हमें मालूम है

मुझे मालूम है मै ,तुम्हे अच्छा लगता हूँ
ये तुम किसी से न कहोगी हमें मालूम है

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

साँझ हुई दिन के पहलू में उजाला बाकी नहीं

साँझ हुई दिन के पहलू में उजाला बाकी नहीं
मेरे सीने में अब कोई भी तमन्ना बाकी नहीं

कुछ आदत है कुछ मर्ज़ी है कुछ शौक है मेरा
कह रहा हूँ ग़ज़लें वर्ना कुछ सुनाना बाकी नहीं

तफरीहन चल रहा हूँ चलता ही रहूँगा मुकेश
कंही पहुंचना नहीं कोई भी मंज़िल पाना नहीं

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

रात दिया जलाने को रह गया

रात दिया जलाने को रह गया तुम्हे कुछ बताने को रह गया बीज मेरी मुट्ठी में ही दबा रहा फूल इक खिलाने को रह गया अभी तो सिर्फ ग़ज़लें सुनाई थी लतीफे तो सुनाने को रह गया मुकेश इलाहाबादी ------

तुम्हे अकेले सफर तय करना पड़ेगा

तुम्हे अकेले सफर तय करना पड़ेगा
या फिर हमारे ही साथ चलना पड़ेगा

तुम चुप हो मै भी खामोश रहता हूँ
किसी न किसी कोतो बोलना पड़ेगा

मुकेश इलाहाबादी ------------------

Monday 14 January 2019

बदस्तूर जारी है, तुम्हारा सताना

बदस्तूर जारी है, तुम्हारा सताना 
रातों दिन का तुम्हारी याद आना 

रोज़ रोज़ मिलने को मेरा कहना 
हर रोज़ का तुम्हारा नया बहाना 

कि तुम्हारे साथ अच्छा लगता है 
या फिर तनहाई में वक़्त बिताना 

मुकेश इलाहाबादी --------------

Sunday 13 January 2019

हमसे बेहतर मिल गया होगा

हमसे बेहतर मिल गया होगा 
इसी लिए इग्नोर किया होगा 

आसमाँ से फिर सितारा टूटा 
दिल के अंदर कुछ टूटा होगा 

मेरी ही कोई  कमी रही होगी 
तभी तो वो बेवफा हुआ होगा 

हमको कमतर समझा उसने 
कुछ देखा होगा समझा होगा 

जिस्म पे इत्ते घाव यूँ ही नहीं 
किसी ने तो पत्थर फेंका होगा 

मुकेश इलाहाबादी ------------

वापसी

वापसी,
के सारे दरवाज़े बंद करके
चबियाँ समंदर में
फेंक आया हूँ
अब, या तो
तू मेरी मंजिल बनेगी
या फिर
मै विलीन हो जाऊँगा शून्य में
हमेशा - हमेशा के लिए
जैसे खो जाती है
धुंए की लकीर
धीरे - धीरे ऊपर उठते हुए
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,

किसी रोज़ जबदरस्ती

किसी
रोज़ जबदरस्ती
तुम्हारे चेहरे से नोच लूँगा
ये खामोशी
उतार फेंकूँगा तुम्हारे वज़ूद से
वर्षों पहना ये उदासी का लबादा
उसके बदले 
ग़ज़लों - नज़्मों और अपने लतीफों को
सजा दूंगा तुम्हारे गुलाबी चेहरे पे लाली की तरह
हमेशा - हमेशा के लिए
और पहनाऊंगा अपने ही हाथों से
रूहानी ईश्क़ की महीन चादर
और फिर हम करेंगे केली
बादलों पे जा के
चाँद तारों के संग

क्यूँ सुमी ?
ठीक रहेगा न है न ?

(मै देख तो नहीं पा रहा पर इतना जानता हूँ
तुम ये पढ़ के अपनी उदासी में भी मुस्कुरा रही होगी
मेरे पागलपन पे ,क्यूँ सच है न ?)

मुकेश इलाहाबादी ---------

Friday 11 January 2019

तनहाई में ये तमाशा कर लेता हूँ

तनहाई में ये तमाशा कर लेता हूँ 
अक्सर रोते - रोते मै हँस लेता हूँ 

खुद के लिए लापरवाही है मुझमे 
तुझसे  मिलना हो तो सज लेता हूँ 

वैसे तो हूँ मै इक आज़ाद परिंदा
कभी कभी घर में भी रह लेता हूँ 

बात किसी की, सह नहीं सकता
अपनों की गाली भी सुन लेता हूँ 

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Thursday 10 January 2019

फूल सा खिल कर मैं क्या करूँगा

फूल सा खिल कर मैं क्या करूँगा
पत्थर बन कर मै भी ख़ुदा बनूंगा

सीने पे पत्थर रख लिया है मैंने 
आज पत्थर की धड़कन सुनूंगा

तुम सोचोगे मै बहुत बोलता हूँ 
आज के बाद कुछ नही बोलूंगा

मैने सुना इश्क़ इत्र का दरिया है
अब मै भी इस दरिया में बहुंगा

तुम पढो या इसे इग्नोर कर दो
पर मै तुझे हर रोज़ ख़त लिखूँगा

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,

Tuesday 8 January 2019

तुम्हारी, आँखे लाल थीं

तुम्हारी,
आँखे लाल थीं
तुम सोना चाहती थी
किंतु नींद तुम्हारी आंखो से कोशों दूर थी
तुम्हारे बदन का रेशा - रेशा
इक गहरी नींद चाहता था
पर नींद की तुमसे अदावत थी
ऐसे में
मै तुम्हें सुनाना चाहता था
एक मीठी लोरी
और तुम्हें सुलाना चाहता था दे कर मीठी - मीठी
हल्की हल्की था्‍पकियां
किंतु
तुम ज़िद पे अड़ी थी
और तुम नहीं चाहते थे ऐसा कुछ
लिहाज़ा हम दोनों लेटे रहे
एक दूजे की तरफ पीठ किए
करवट लिए हुए
देर तक दीवारों को देखते हुए

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,

Friday 4 January 2019

कहो तो तुम्हारे ये घने गेसू छू के देखूं तो

कहो तो तुम्हारे ये घने गेसू छू के देखूं तो
बादल छम- छम कैसे बरसते हैं जानू तो

तुम बहुत मासूम  बहुत प्यारी लगती हो
गुस्सा मत होना,जो तेरे गलों को चूमू तो

ये सांझ का वक़्त  और ये मंद-मंद हवाएँ
कित्ता अच्छा हो गर मै तुम संग घूमूं तो

कुछ चैन कुछ आराम मिल जाएगा अगर 
मुकेश तेरी गोद में सर रख कर सो लूँ तो 

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

अभी, मुस्कुराहट से छुपा रक्खा है

अभी, मुस्कुराहट से छुपा रक्खा है
कभी ज़ख्मों को रो के दिखाऊंगा मै

जानता हूँ मै तुम भी कम दुखी नही
अपने लतीफों से तुझे हंसाऊँगा मै

अभी तुम्हे भी फुर्सत नहीं मुझे भी
कभी मौका निकाल के आऊँगा मै

कौन कहता है तेरा सीना पत्थर है
इसी पत्थर पे फूल खिलाऊँगा मै

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Wednesday 2 January 2019

उजाला अँधेरे का दर्द कब समझेगा

उजाला  अँधेरे  का दर्द कब समझेगा
दिया में तेल कम होगा तब समझेगा

ज़माने  के लिए  करते रहो तो फ़र्ज़ है
अपने लिए करो तो खुधगर्ज़ समझेगा


मुकेश इलाहाबादी -------------------

महफ़िल में हँसे तन्हाइयों में रोया किये

महफ़िल में हँसे तन्हाइयों में रोया किये
अपने ज़ख्मो को आँसुओं से धोया किये

कोमल बाँहों के तकिये किस्मत में कहाँ
हम तो कांटो के बिस्तर पर सोया किये

हमारी क्यारी में इक फूल भी न खिला
शायद हम ही बीज रेत् में बोया किये

मुकेश इलाहाबादी -------------------