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Tuesday 7 July 2020

कोई भी ज़ख्म भरते भरते भरता है

कोई भी ज़ख्म भरते भरते भरता है
किसी को भूलने में वक़्त लगता है

दिल का क्या छन्न से टूट जाता है
जिस्म को मरने में वक़्त लगता है 

अगर इंसान को खिलौना कहते हो
तो खिलौने में चाबी कौन भरता है

बर्फ और इंसान की सिफ़त एक सी
एक आग से दूसरा ग़म से गलता है

जब से इंसानियत वहसी हो गयी है
मुक्कू मुझे जानवर बेहतर लगता है

मुकेश इलाहाबादी -------------------




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