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Tuesday 14 July 2020

उसकी आँखों में इक उदास नदी देखी थी

उसकी आँखों में इक उदास नदी देखी थी
मैंने हंसी व गुदगुदी की नाव चला दी थी
बहुत देर तक हम नौका विहार करते रहे
पहले वो खामोश रही फिर मुस्कुराई थी
मै खुश था मैंने किसी के लबों पे हँसी दी
ये ख़शफ़हमी नहीं मेरी गलतफहमी थी
इक दिन उसकी आँखों में डूब कर देखा
वहां मेरी नहीं कोइ और सूरत तैरती थी
अब मेरी आखों में खारा समंदर बहता है
कलतक जहाँ मीठे पानी की इक नदी थी
मुकेश इलाहाबादी ------------------

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