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Monday 6 July 2020

रात सिसकने लगती हैं नींद चौंक जाती है

रात सिसकने लगती हैं नींद चौंक जाती है
यादें जब मुझे तेरे नाम की लोरी सुनाती है
अक्सर नींद से उठ कर टहलता हूँ फिर मै
देर तलक तुझे सोचता हूँ तब नींद आती है
बड़ी गुस्ताख़ है ज़माने की हवा भी मुकेश
रह - रह के बुझते अलाव को जला जाती है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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