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Sunday 26 July 2020

फिर बेहया सी मुस्कुरा रही है हवा

फिर बेहया सी मुस्कुरा रही है हवा
कहीं तो आग लगा के आयी है हवा
बेला चम्पा चमेली गुलाब रातरानी
किसी गुलशन से हो के आयी है हवा
कानो में ये रस कौन घोल रहा शायद
बदन उसका छू के गुनगुना रही है हवा
आज हवा में तपन नहीं ठंडक सी है
शायद नदी से मिल के आयी है हवा
तू दुपट्टा अपना संभाल के रख गोरी
कई बार आँचल उड़ा ले जाती है हवा
मुकेश इलाहाबादी ---------------

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