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Wednesday 30 May 2012

काली है रात तो क्या ?

बैठे ठाले की तरंग ---------------
(किसी काली - बरसती - पहाडी रात की
ख़ूबसूरती से अभिभूत हो के ये पंक्तियाँ
खुद ब खुद उतरी हैं - हो सकता है आप
लोगों को पसंद आये -)


काली है रात
तो क्या ?
गीत गाओ - सुमधुर
अबोली है
रात सांवली
कुछ तो बतियाओ - सुमधुर
पर्वतों से है उतरती
काली उर्वशी
देह चन्दन
मन कुसुम
है रात श्यामला उर्वशी ------
काली है रात
तो क्या ?
गीत गाओ सुमधुर
प्रेम पाप पुण्य की
वर्जनाओं में कब बंधा ? - सुमधुर
फुसफुसाहटें बन जाएँ होंठ
ये रात काली - सुमधुर
उर्वशी के उच्छ्वास से
बन जाए गीत सुमधुर
नीद में पक्षी हैं - युगन्बद्ध
गीत गाओ - सुमधुर
रात श्यामली - उत्तुंग उरोज
प्यासे हैं होंठ
बरसो रे मेघ - सुमधुर
काली हैं रात तो क्या ?
गीत गाओ - सुमधुर
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मुकेश इलाहाबादी ----------------

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