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Saturday 23 September 2017

पंच तत्व और उनका दर्द

पंच तत्व और उनका दर्द
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पांचो,
तत्व अंतरिक्ष में
मिल बैठे एक दिन
कुशल क्षेम के बाद
व्योम ने कहा ,

पृथ्वी ! अनंत काल से तुम्हे अपनी धुरी पे
घुमते हुए और सूर्य की परिक्रमा करते देखता आ रहा हूँ
तुम, सदैव नाचती आयी हो अपनी सतरंगी आभा से
देते हुए फल फूल, अनाज, सोने बैठने के लिए धरती
और घर बनाने को मिट्टी लोहा और सारे अयस्क अपने
पुत्रों पुत्रियों और सभी नभचर, जलचर व पृथ्वी पे
चलने वाले सभी प्राणियों को बिना भेद भाव, पर अब क्यूँ
इतना उदास हो ???

पृथ्वी, यह सुन और उदास हो गयी, सारे तत्व अग्नि, वायु और
आकाश भी गंभीर हो गए

पृथ्वी ने कहा ,
हे ! पितृवत व्योम , आप से क्या कुछ छुपा है ? मेरा दुःख मेरा सुख
पर वर्तमान में मुझे दुःख सिर्फ मनुष्य से है जिसे मैंने
सभी जीवों से ज़्यादा मान दिया, स्नेह दिया परन्तु अफ़सोस ये देख  होता है
कि आज तक सभी जीव अपनी अपनी मर्यादा में है सिवाय मनुष्य के,
हिंसक से हिंसक जानवर भी पेट भर खाते हैं,  और पेट भरने के बाद
अहिंसक हो जाते हैं,
पंक्षी भी उतना बड़ा नीड बनाते है
जितनी उसकी ज़रुरत होती है
यंहा तक की कुछ असभ्य और आदवासी कहे जाने वाले मनुष्य भी
उतने हिंसक नहीं हुए जितना आज का पढ़ा लिखा और अपने को सभ्य
कहने वाला मनुष्य समुदाय है ,
उसने न केवल सभ्य होने के साथ साथ क़त्ले आम करने के नए नए तरीके ढूंढें ,
बल्कि अपनी आवश्यक्ता से अधिक बड़े-बड़े भवनों   के लिए बेवज़ह हमारे
जिस्म को खोदा, समंदर का सीना चीरा, जंगल और बृक्ष  जो मेरे वस्त्र ही नहीं
आबरू है उसे भी काटा जलाया और बर्बाद कर रहा है,
पितृ तुल्य व्योम हम सभी तत्व आप से ही उपजे हैं, आप ही बताइये ऐसे
कठिन वक़्त में मै कैसे मुस्कुरा सकती हूँ ???

पृथ्वी की ये बातें सुन - सभा में सन्नाटा छा जाता है,
व्योम कुछ कहता इसके पहले ही

जल ने कहा
हे व्योम देवता !
बहन पृथ्वी ही नहीं मै भी कम दुःखी नहीं हूँ, इस पृथ्वी लोक के मनुष्य जाति से'
सारे तत्वों की निगाह अब जल पे थी, जल ने अपनी बात जारी रखी
'आप तो जानते ही हैं , और मनुष्य ही नहीं पृथ्वी के सभी जीव जानते हैं, भले उसे
व्यक्त न कर पाएं कि , 'जल  ही जीवन है' पृथिवी लोक में जीवन ही मेरे कारण प्रारम्भ
हुआ है, और अगर मै न रहूँ तो सब कुछ जड़ हो जाएगा, मृत्यु को प्राप्त होगा, किन्तु
ये मनुष्य नाम का प्राणी निरंतर मेरा दोहन करता रहता है,बिना इस बात की परवाह
किये कि मुझे भी शुद्धता की दरकार  है, जीवन को बनाये रखने के लिए , मेरा भी संरक्षण
करना ज़रूरी है धन की तरह, किन्तु नासमझ मनुष्य मुझे लगातर नष्ट किये जा रहा है,
ज़्यदातर ताल पोखर सूख चुके हैं, नदियां सूख चुकी हैं या बेहद दूषित हो चुकी हैं,
जल स्तर ज़मीन के नीचे निचले से निचले स्तर तक जा चुका है,
लिहाज़ा हे मेरे पिता तुल्य व्योम, शायद अब मै मनुष्य जाति की रक्षा न कर सकूं तो
आप हमें क्षमा करेंगे, या फिर इन मनुष्यों को सद्बुद्धि प्रदान करें।

ऐसा ही वायु ने कहा ,
हे व्योम देवता !  बहन पृथ्वी और भाई जल की पीड़ा का साक्षी मै भी हूँ ,
हे पिता व्योम आप के आदेशानुसार मै भी सभी जीवों की साँसों में बस के उन्हें निरन्त
जीवन को बनाए रखने में मदद करता आया हूँ, किन्तु इस मुर्ख मनुष्य ने हमें भी नहीं
बख्शा हाला कि मनुष्य  जानता है मेरे बिन वो एक मिनट भी ज़िंदा न बचेगा किन्तु उसने
मेरी शुद्धता को बनाये रखने के सारे उपाय ख़त्म करता जा रहा है और हमी से शुद्ध हवा
की उम्मीद करता है, सारे वृक्ष और जंगल काट के, प्रदूषण बढ़ा के।  लिहाज़ा हे पिता मै
पृथिवी लोक छोड़ के जाऊं और आप के ये मनुष्य रूपी कृतघ्न बालक मृत्यु को प्राप्त हों,
इसके पहले आप इन्हे सद बुद्धि प्रदान करें ,

यह कह कर वायु चुप देवता चुप हुए तभी अग्नि देवता ने अपने मुख़ार  बिंदु से ये उद्गार
निकाले ' हे व्योम ! इन सभी की बातें अक्षरशः सत्य है, मै भी मनुष्य के विकास के
साथ - साथ इनके सुख - दुःख का साथी रहा हूँ , हाँ यह सच है मेरी उष्णता के चलते मुझे
मनुष्य दूषित तो नहीं कर सका कित्नु उसकी जठराग्नि, कामाग्नि और लालच की
प्रवृति इस कदर बढ़ गयी है कि मज़बूरन मुझे विकराल रूप ले कर आप के इन प्रिय
मनुष्य रूपी सन्तानो को ख़त्म करना पड़ेगा , अतः हम सभी तत्व अपने अपने
भयंकर रूप में आये इसके पहले इन्हे सद्बुद्धि प्रदान करें

चारों तत्वों की बात सुन व्योम देवता गंभीर आवाज़ में बोले, 'हे पुत्र जल, अग्नि  वायूं
एवं पुत्री पृथ्वी तुम लोग ही नहीं मै भी अब अपनी शांति खोता हुआ पा रहा हूँ,
कारण  ये नटखट और दुष्ट प्रकृति का मनुष्य अब अंतरिक्ष में भी अपने पैर फैला रहा है,
किन्तु मेरी विशालता के आगे अभी उसकी कम चलती है , किन्तु आप लोगों का
दर्द समझ सकता हूँ,
अभी तो यही कहूंगा आप लोग अपने अपने धर्म का पालन करें,
जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा - चाहे वो देवता हूँ मनुष्य हो या कोइ भी हो।
यह कह कर व्योम शांत हो गए ,
सभी तत्व एक दुसरे को प्रणाम कह के अपने अपने धर्मो में रत हो गए

अंतरिक्ष में एक बार फिर से नीरव शांति व्याप्त हो गयी ,

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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