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Saturday 11 August 2018

तुम - थोड़ा ख्वाब - थोड़ी हकीकत --------------------------------


तुम - थोड़ा ख्वाब - थोड़ी हकीकत
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फूलों
से बने तारों से सजे
उड़न खटोले पे बैठी हो तुम
बॉब्ड कट बालों में सुर्ख गुलाब
और सफ़ेद रातरानी के फूलों का हेयर बैंड
किसी राजकुमारी के ताज सा दमक रहा है
दूज के चाँद सी मुस्करा रही हो
तुम्हारे चेहरे पे हमेसा सी खिली है
तुम्हारे हाथों में खरगोश के बच्चों सा मुलायम
और रूई के फाहों सा सफ़ेद टैडी बियर लिए
तुम बेहद खूबसूरत और खुश लग रही हो

धीरे - धीरे तुम थोड़े थोड़े भूरे - थोड़े थोड़े थोड़े सांवले
बादलों के बीच से उतर रही हो
धीरे धीरे - धीरे धीरे
अब मेरे कमरे में खिड़की के पास आ के
संतूर की सी मोहक आवाज़ में पुकारती हो
"हेल्लो - मै सुमी बोल रही हूँ "
मै एक गहरी तन्द्रा में
"कौन सुमी,,,,??"
"अरे मै सुमी बोल रही हूँ - सुमी - बादलों के पार से "
बरसों पुरानी तन्द्रा टूटी हो जैसे
एक साथ फूलों का टोकरा सिर पे गिर गया हो जैसे
एक झटके में स्वर्ग में आ गया हूँ - जैसे
बस ऐसा ही लगा  था -
एक  अरसे बाद तुम्हारी आवाज़ सुन
तुम खिलखिला रही थी
फिर - ढेरों बातें - ढेरों शिकायतें
ढेरों किस्से
जी ही नहीं भर रहा था - तुम्हे सुनते हुए
तुमसे बतियाते हुए
पर अचानक तुम
टाटा - बाय - बाय कहती फिर
बादलों के पार चली गयीं अपने उड़न खटोले पे सवार हो के
अब - एक बार फिर मै ख्वाबों की दुनिया से बाहर
हक़ीक़त की अँधेरे कमरे में था
पर, अब मेरे पास थी
तुम्हारे बदन की रातरानी खुशबू
तुम्हरी संतुरी हँसी
ढेर सारे किस्से
जिनके सहारे एक बार फिर
पार कर लूँगा - हिज़्र की ज़हरीली नदी

क्यूँ सुन रही हो न ?
मेरी प्यारी सुमी,,,,

मुकेश इलाहाबादी -------------


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