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Tuesday 2 October 2018

ख़ुदा से ज़िंदगी की और दुआ मांगी नही जाती

ख़ुदा से ज़िंदगी की और दुआ मांगी नही जाती
तुझसे जुदाई की ये सज़ा और सही नही जाती

कई बार सोचा किसी को सुना दूँ पर जाने क्यूँ
दर्दों ग़म की ये दास्तां मुझसे कही नही जाती

हंसने मुस्कुराने के तमाम जतन करे फिर भी
मुकेश जाने क्यूँ चेहरे से ये उदासी नहीं जाती

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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