कभी
चंदन बन तो
कभी,
महकते बागों मे रहूँ
चंदन बन तो
कभी,
महकते बागों मे रहूँ
जी तो चाहता है
उम्र भर
तेरी मस्त
निगाहों मे रहूँ
उम्र भर
तेरी मस्त
निगाहों मे रहूँ
दिन भले ही
गुज़रे आफताब सा
जलते हुए
रात, तुम्हारी
मरमरी बाहों में रहूँ
गुज़रे आफताब सा
जलते हुए
रात, तुम्हारी
मरमरी बाहों में रहूँ
तू ही
मेरी आरज़ू
तू ही मेरी ज़िंदगी
कशमकश में हूं
ये ज़रा सी बात
तुझसे कैसे कहूँ
मेरी आरज़ू
तू ही मेरी ज़िंदगी
कशमकश में हूं
ये ज़रा सी बात
तुझसे कैसे कहूँ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-09-2019) को "आलस में सब चूर" (चर्चा अंक- 3467) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteसादर
वाह बहुत ही उम्दा ।
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