Pages

Thursday 25 June 2020

नरक कुण्ड की मछली ------------------------


लड़की
की आँखों में
मछली थी
जो ख्वाबों के समंदर में
अपने रंगीन डैने लहरा के दूर तक
तेरा करती, अपने छोटे से मुँह से
ईश्क़ का पानी पीती
खूबसूरत गलफड़ों से पिचकारी सी निकालती
जो समंदर के ऊपर बुलबुले सा तैरता
मछली को इस तरह तैरना बेहद पसंद था
एक दिन
उस मासूम रंगीन मछली पे एक
मगरमच्छ की नज़र पडी
नहीं - नहीं वो
मगरमच्छा नहीं
एक बेहद शातिर मछुआरा था
जिसकी बाहों की मज़बूत मछलियाँ किसी भी
मछली को आकर्षित करने का माद्दा रखती
उसकी पसिनाई देह की मानुष गंध बेहद नशीली थी
उसकी लच्छेदार बातों में गज़ब का जादू था
उसकी आँखे किसी जादूगर की आँखे लगती
उसके हाथो में बातों मे ग़ज़लों में
मोहक काँटा होता
जससे ये मासूम मछली भी न बच पायी
और एक दिन वो उस शातिर मछुआरे के जाल में आ फँसी
फिलहाल मछली उस जादूई जाल में खुश है
लेकिन ये तय है
एक दिन वो शातिर महुआरा इस मासूम को भी
इस तिलस्मी जाल से निकाल के
अपनी यादों के नरक कुण्ड में डाल देगा
और दूसरी मछलियों की तरह
तब ये मछली भी बहुत पछताएगी
पर अब मै कुछ नहीं कर पाऊँगा
सिवाय
कुछ उदास कविताओं के लिखने के
(शीर्षक वरिष्ठ साहित्यकार और गुरु तुल्य
श्री अजित पुष्कल जी की एक कहानी से प्रेरित हो के )
मुकेश इलाहाबादी -----------------

No comments:

Post a Comment