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Friday 21 August 2020

इक तुम ही हो जिससे कह सुन लेते हैं

 इक तुम ही हो जिससे कह सुन लेते हैं 

वैसे तो अक्सरहां  हम  चुप ही रहते हैं 


तुम्हारी हरबात अफसाना आँखे नज़्म 

जिसे हम चुपके - चुपके पढ़ते रहते हैं 


दिन में यादों के पंछी सोये से रहते हैं 

साँझ होते ही फलक पे उड़ने लगते हैं 


ये मासूम हँसी दूध सा चेहरा तभी तो 

तुझको लोग परियों की रानी कहते हैं 


या तो मुझको सफर में तेरा साथ मिले 

या फिर सफर में तन्हा ही खुश रहते हैं 


मुकेश इलाहाबादी ---------------------




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