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Monday 7 September 2020

तुझे, एक बार देखने से जी कहाँ भरता है ?

 तुझे,

एक बार देखने से 

जी कहाँ भरता है ?

हज़ार बार देखूं

तो भी कम लगता है 

तेरी आँखों में है

जाने कौन सा जादू 

इस जादू में ही 

खोये - खोये रहने का

मन करता है 

तू हँस देती है 

तो महुआ झरता है 

जिसकी मस्ती में 

सारा आलम 

हर वक़्त करता है 


ओ ! मेरी सुमी 

ओ ! मेरी महुआ 

तू मेरे सामने रहे 

और मै यूँ ही नज़्म लिखता रहूँ 

जाने क्यूँ बस यही मन करता है 


मुकेश इलाहाबादी -----

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