इतिहास खुद को फिर -फिर दोहराता है
औरंगज़ेब रूप बदल-बदल कर आता है
जिसके पास धनबल हो और हो बाहुबल
वही सत्ता की कुर्सी बार - बार पाता है
चाँद हो, सूरज हो, बादल हो, समंदर हो
ताकत के आगे हर कोई शीश नवाता है
चाहे राज लोकतंत्र हो या कि प्रजातंत्र हो
गरीब व कमज़ोर हर तंत्र में मार खाता है
हैं सच मेहनत ईमानदारी, किताबी बातें
मुकेश इन बातों से पेट कँहा भर पाता है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
औरंगज़ेब रूप बदल-बदल कर आता है
जिसके पास धनबल हो और हो बाहुबल
वही सत्ता की कुर्सी बार - बार पाता है
चाँद हो, सूरज हो, बादल हो, समंदर हो
ताकत के आगे हर कोई शीश नवाता है
चाहे राज लोकतंत्र हो या कि प्रजातंत्र हो
गरीब व कमज़ोर हर तंत्र में मार खाता है
हैं सच मेहनत ईमानदारी, किताबी बातें
मुकेश इन बातों से पेट कँहा भर पाता है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
No comments:
Post a Comment