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Thursday, 17 May 2018

इतिहास खुद को फिर -फिर दोहराता है

इतिहास खुद को फिर -फिर दोहराता है
औरंगज़ेब रूप बदल-बदल कर आता है

जिसके पास धनबल हो और हो बाहुबल
वही सत्ता की कुर्सी बार - बार पाता है

चाँद हो, सूरज हो, बादल हो, समंदर हो
ताकत के आगे हर कोई शीश नवाता है 

चाहे राज लोकतंत्र हो या कि प्रजातंत्र हो 
गरीब व कमज़ोर हर तंत्र में मार खाता है

हैं सच मेहनत ईमानदारी, किताबी बातें
मुकेश इन बातों से पेट कँहा भर पाता है

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

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