एक
ही खिड़की से
हमने देखा कई बार
चाँद को बादल के
अगोश में
खिलखिलाते हुए
ही खिड़की से
हमने देखा कई बार
चाँद को बादल के
अगोश में
खिलखिलाते हुए
कई बार हमने देखा
एक ही खिड़की से
साथ - साथ
दूर क्षितिज़ पे
प्रेम का तारा
'शुक्र तारा' को उगते हुए
एक ही खिड़की से
साथ - साथ
दूर क्षितिज़ पे
प्रेम का तारा
'शुक्र तारा' को उगते हुए
और अब तुम देखना
अपनी खिड़की से
तन्हा
दूर गगन मे एक
सितारे को टूटते हुए
अपनी खिड़की से
तन्हा
दूर गगन मे एक
सितारे को टूटते हुए
मुकेश इलाहाबादी,,,,,
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-08-2019) को "पढ़े-लिखे मजबूर" (चर्चा अंक- 3427) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-08-2019) को "पढ़े-लिखे मजबूर" (चर्चा अंक- 3427) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'