कभी
चंदन बन तो
कभी,
महकते बागों मे रहूँ
चंदन बन तो
कभी,
महकते बागों मे रहूँ
जी तो चाहता है
उम्र भर
तेरी मस्त
निगाहों मे रहूँ
उम्र भर
तेरी मस्त
निगाहों मे रहूँ
दिन भले ही
गुज़रे आफताब सा
जलते हुए
रात, तुम्हारी
मरमरी बाहों में रहूँ
गुज़रे आफताब सा
जलते हुए
रात, तुम्हारी
मरमरी बाहों में रहूँ
तू ही
मेरी आरज़ू
तू ही मेरी ज़िंदगी
कशमकश में हूं
ये ज़रा सी बात
तुझसे कैसे कहूँ
मेरी आरज़ू
तू ही मेरी ज़िंदगी
कशमकश में हूं
ये ज़रा सी बात
तुझसे कैसे कहूँ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,
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