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Saturday, 21 September 2019

कभी चंदन बन तो कभी, महकते बागों मे रहूँ

कभी
चंदन बन तो
कभी,
महकते बागों मे रहूँ
जी तो चाहता है
उम्र भर
तेरी मस्त
निगाहों मे रहूँ
दिन भले ही
गुज़रे आफताब सा
जलते हुए
रात, तुम्हारी
मरमरी बाहों में रहूँ
तू ही
मेरी आरज़ू
तू ही मेरी ज़िंदगी
कशमकश में हूं
ये ज़रा सी बात
तुझसे कैसे कहूँ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,

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