जैसे
पकते हैं, फल
अपने मौसम में
पेड़ों पे, धीरे - धीरे
वैसे ही तेरा ईश्क़
बढ़ा रहा मेरे दिल में -
धीरे - धीरे
जैसे - आँवा में
सीझता है
कच्चा घड़ा, धीरे - धीरे
वैसे ही मै सिझ रहा हूँ
तुम्हारे प्यार में - धीरे -धीरे
बहता है झरना
चट्टानों के भीतर - भीतर
वैसे ही
तुम बहती होतुम`
मेरे भीतर - भीतर
जैसे योगी सुनता है
सोऽहं अपने भीतर - धीरे - धीरे
बस ऐसे ही मै भी सुनता हूँ
तुमको अपने दिल के भीतर - भीतर
मुकेश इलाहाबादी ------------
मुकेश इलाहाबादी -------
पकते हैं, फल
अपने मौसम में
पेड़ों पे, धीरे - धीरे
वैसे ही तेरा ईश्क़
बढ़ा रहा मेरे दिल में -
धीरे - धीरे
जैसे - आँवा में
सीझता है
कच्चा घड़ा, धीरे - धीरे
वैसे ही मै सिझ रहा हूँ
तुम्हारे प्यार में - धीरे -धीरे
बहता है झरना
चट्टानों के भीतर - भीतर
वैसे ही
तुम बहती होतुम`
मेरे भीतर - भीतर
जैसे योगी सुनता है
सोऽहं अपने भीतर - धीरे - धीरे
बस ऐसे ही मै भी सुनता हूँ
तुमको अपने दिल के भीतर - भीतर
मुकेश इलाहाबादी ------------
मुकेश इलाहाबादी -------
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