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Monday 6 April 2020

मेरे लॉक् डाउन का 17 वां दिन

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अभिशाप
ही सही जब हमारी
बहिर्यात्रा को कुछ दिनों के लिए
विराम लग ही गया है तो
तो आइये हम
अब कुछ कदम
अंतर्यात्रा की और बढ़ाएं
पूजा की स्थान पे
या बुक सेल्फ में वर्षों से रखी
पुस्तकों को उल्टे पलटें
या अपने मन के पन्नो को पलटें तो अवश्य जानेंगे
की
संसार
का सार "वेदों" में
वेदों का सार "उपनिषदों " में
उपनिषदों का सार "ब्रह्म सूत्र " में
ब्रह्म सूत्र का सार "भगवत गीता " में है
और तब हम ये भी जानेंगे
सारा महाभारत हमारे ही अंदर है
द्रौपदी - माया
पंचेंद्रिया - पांच पांडव
सौ कौरव - कु -प्रवृतियां
धराष्ट्र - अज्ञान
सृंजय - विवेक
जड़ चेतन के द्वैत को जानने वाला - द्रोणाचार्य (गुरु)
भ्रम और धृण प्रतिज्ञा - भीष्म
शरीर - (कुरु ) क्षेत्र
और
परमात्मा - क्षेत्रज्ञ है
और जिस दिन हम ये सब जान लेते हैं
उस दिन हम अपनी मंज़िल पे पंहुच जाते हैं
तब यात्रा भी - पड़ाव सी लगती है
हर पड़ाव भी - यात्रा का आनंद देती है
फिर कोई लॉक डाउन नहीं होता
मन - बुद्धि - अज्ञान के सभी
लॉक खुल चुके होते हैं
तब माटी के दिए नहीं
आत्मा का दिया जलता है
ज्ञान के तेल से
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (08-04-2020) को      "मातृभू को शीश नवायें"  ( चर्चा अंक-3665)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ज्ञानपरक सटीक चिंतन।

    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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  4. सही कहा अंतर्मन की यात्रा करनी है अब

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  5. वाह ! अद्भुत ! ज्ञान के तेल से आत्मा का दीपक जलाना है !

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