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Monday, 6 April 2020

मेरे लॉक डाउन का सोलहवां दिन --------

घर
का कोना कोना मुश्कुरा रहा है
सोफे और अलमारी के पीछे की
छिपी हुई दीवारें भी खिलखिला रही हैं
बहुत दिनों बाद अपने घर के
मालिक मालिकिन के हाथों का स्पर्श पा के
वर्ना तो काम वाली बाई या नौकरों के हाथों
बस झाड़ पोछ दिए जाते थे
कभी हलके से तो कभी बेदर्दी से
और अब तो
बॉलकनी और छत पे
बहुत दिनों से उदास गमले का पौधा भी
खुश है अपनी निराई गुड़ाई पा के
बुक सेल्फ की किताबें भी
कह रही हैं
चलो तुम्हे मेरी याद तो आई
वर्ना बुक फेयर से खरीद के लाने के बाद
से ही हमें भूल गए थे
जैसे कोइ राजा या बादशाह भूल जाता था
नई पटरानी को महल में लाने के दो चार दिनों बाद
बूढ़ी माँ खुश है
चलो किसी बहाने बेटे को दिखा तो
कि उसकी माँ का मोतिया बिन्द बढ़ गया है
और कहा कि "लॉक डाउन ख़त्म हो तो ऑपरेशन करा दूँगा "
बच्चे खुश हैं अपने माँ बाप को अपने साथ पा के
हाँ ! मै भी खुश हूँ
भागते दौड़ते रहने के बाद एका - एक ठहर जाने से
कुछ आराम पा जाने से
हाँ ! ये अलग बात
उदास हो जाता हूँ सोच कर
उन गरीबों के बारे में जिनके पास इस लॉक डाउन में
खाने को भोजन न होगा
दिन रात मौत हथेली पे लिए
विषाणु से लड़ते डॉक्टर्स
अपनी ड्यूटी निभाते सुरक्षा कर्म
और एसेंसिअल सर्विसेज वालों के बारे में
तो उदास हो जाता हूँ
और क्षोभ से भर जाता हूँ
जब कुछ सिरफिरे इस आपदा को भी
मज़हबी रंग देने पे तुले हैं
और मानवता के दुश्मन बने हैं
और और भी बहुत कुछ सोचता हूँ
और सोचता हूँ ये लॉक डाउन
हमें एक नए सिरे से सोचने पे मज़बूर करेगा
या इस विषाणु से कोरोना से जंग जीतने के बाद
एक बार फिर उसी अँधेरे के जंगल में गुम हो जाएँगे
खैर ! फिर भी हम आज अपने प्रधानमंत्री जी के
आवाहन पे "तमसो माँ ज्योतिर्गमय " के भाव को
मन में रखते हुए इस जीवाणू को दूर भागने के लिए
रात्रि 9 बजे 9 मिनट के लिए दिए की या मोमबत्ती की रोशनी करें
सर्वे भवन्तु सुखिनः - सर्वे भवन्तु निरामयः
मुकेश इलाहाबादी ----------------

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