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Monday 31 August 2020

अपने चेहरे पे हम शिकन नहीं रखते

 अपने चेहरे पे हम शिकन नहीं रखते 

दर्द कितना है कभी ज़िक्र नहीं करते 


मौका ढूंढ के लौटा दिया करते है हम  

जेब में किसी का एहसान नहीं रखते 


मिट जाए भले हस्ती हमारी मंज़ूर है

धौंस किसी की किसी हाल नहीं सहते 


घाटा तो बहोत है मगर कोइ ग़म नहीं 

ईश्क़ के सिवा कोइ व्यापार नहीं करते 


हमको भी मालूम है दौरे दस्तूर मगर 

फायदे के लिए सच को झूठ नहीं कहते 


मुकेश इलाहाबादी -------------------

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