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Monday, 22 July 2019

चमकीले ख्वाबों

मैंने
अपने चमकीले ख्वाबों को
अलविदा कह दिया था

रोज़ रोज़ दाढ़ी बनाना
नए कपड़े सिल्वाना
जूते चमकाना
और इत्र लगाना छोड़ दिया था

क्यूँ कि मेरी ज़िंदगी में
कोई भी खुशी न थी
न आने की उम्मीद थी

और चमत्कारों पे मुझे कोई यकीन न था

फिर तुम मुझे
जादू की तरह मिले
और
अब मुझे

हवाएँ बहती हुई नहीं ठूनकती हुई लगती हैं
फूल कुछ और
खूबसूरत लगते हैं
चाँद और
चमकीला लगता है

सुन रही हो न?

ओ! मेरी सुमी
ओ! मेरी जादू
ओ! मेरी ज़िंदगी का चमत्कार

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-07-2019) को "नदारत है बारिश" (चर्चा अंक- 3406) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-07-2019) को "नदारत है बारिश" (चर्चा अंक- 3406) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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