Pages

Monday 24 February 2020

जुलाहे ,,,,,,,,,,


माँ
घूमती है,
तकली की तरह
पूरे घर मे
कातती है सतत
धागा प्रेम और वात्सल्य का फिर पिता
अपने मज़बूत ताने बाने मे कस के बुनते हैं
एक महीन, मुलायम चादर
जिसे ओढ़ा के वे
बचा लेते हैं हमे
जिंदगी की
ठिठुरती रातों से
मुकेश इलाहाबादी,,,,

No comments:

Post a Comment