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Monday 5 October 2020

तुझे देखूँ तुझे सोचूँ तुझे चाहूँ तुझे मह्सूसूँ

 तुझे देखूँ तुझे सोचूँ तुझे चाहूँ तुझे मह्सूसूँ 

फिर उँगलियों के पोरों से हौले - हौले छू लूँ 


किसी सावन की घटा से कम नहीं तेरे गेसू 

तू अपनी भीगी ज़ुल्फ़ें झटके और मै भीगूँ 


हकीकत में तो न आओगे मालूम है हमको 

ख्वाब में ही आने का वादा करो तो मै सोऊँ 

 

ईश्क़ के समंदर किनारे ये जो चांदी के रेत है 

आ जाओ तुम्हारे संग ख्वाबों के घरौंदे रूधूँ 


मुकेश बड़ा जी उदास उदास सा रहे है मेरा 

बैठ पास मेरे तेरे काँधे पे सर रख कर रो लूँ 


मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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