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Wednesday 28 October 2020

औपचारिक रूप से

 एक 

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हम 

कभी औपचारिक रूप से 

किसी के द्वारा मिलवाये नहीं गए 

बस हम 

सभा सोसाइटी में 

तो कभी राह चलते 

गाहे - बगाहे 

मिलते - मिलाते रहे 

एक दूसरे  को जानते समझते रहे 

और महसूसने लगे 

शिद्दत से 

एक दूजे को 

बिना कुछ कहे 

बिना कुछ सुने 

बहुत दिनों तक ,,,,,,,


दो 

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हमारी 

गाहे - बगाहे की 

औपचारिक मुलाकातें भी 

कभी सामाजिकता 

तो कभी व्यस्तता 

तो कभी संकोच वश 

कमतर होती गईं थी 

और इतनी कम कि 

हम एक दूजे को भूले भी नहीं 

जी भर मिले भी नहीं 



तीन 

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हमारी 

गाहे बगाहे की 

कम होती 

औपचारिक या कहो अनौपचारिक 

सी मुलाकातों के बीच 

एक दिन तुम्हे पता लगा होगा 

मैंने शहर छोड़ दिया है 

और ,,,, बहुत अर्से बाद मैंने भी सुना 

तुमने भी शहर छोड़ दिया (शादी के बाद )

और इस तरह हमारी अनौपचारिक रूप 

से मुलाकातों का अंत हुआ 



चार 

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शायद

हम औपचारिक रूप से 

बिदा नहीं हुए 

अन्यथा 

हम भी एक दूजे से 

आख़िरी बार मिले होते 

किसी झुटपुटी सांझ 

छत पे 

या किसी पार्क के कोने में 

अमलतास की झरती पीली पत्तियों के बीच 

या किसी कैफ़े डे की कोने वाली सीट पे 

और तब 

हम  दुसरे की हथेली को पकडे हुए 

महसूसते देर तक 

आँखों ही आँखों में 

कहा होता बहुत कुछ 

औपचारिक सा 

अनौपचारिक सा 

और छूट जाता तुम्हारी प्लेट में 

अधखाया डोसा 

और मेरे कप में 

थोड़ी सी कॉफी 

और फिर हम 

बिदा हो लिए होते 

औपचारिक रूप से 

फिर कभी न मिलने के लिए 


(और टूटता हुआ देखते एक सितारा बहुत दूर )


मुकेश इलाहाबादी --------------------------












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