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Thursday 22 October 2020

मै इक आइना चटका हुआ हूँ

 मै इक आइना चटका हुआ हूँ

या पत्ता डाल से टूटा हुआ हूँ
कोई तो हो समेट ले मुझको
रेज़ा- रेज़ा मै बिखरा हुआ हूँ
जिस्म मेरा ग़म का मकबरा
फ़िलहाल वहीं ठहरा हुआ हूँ
यूँ तो नशे की कोई लत नहीं
तेरे ही इश्क़ में बहका हुआ हूँ
कोई तो मेरे घर का पता बता
इक मुसाफिर भटका हुआ हूँ
मुकेश इलाहाबादी ----------

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