Pages

Tuesday 10 November 2020

जाड़े की सुबह पांच बजे -----------------------

 

हालाकि
अभी
तितली
कलियाँ
भौंरे सभी अलसाऐ
से लेटे हैं
अपने अपने गर्म नर्म बिछौने पे
पर उधर सूरज बिना अलसाऐ अपनी सुरमई किरनों से
धरती को एक बार फिर
अपनी बाहों मे भर लेने को अंगड़ाई ले रहा है
चाँद रात भर आवारगी के बाद
अपनी माँद में
लौटने की तैयारी
कर रहा है
रात की ठंडी हवाएँ
तिरछी हो के चल रही हैं.
और ऐसे में
नींद ने मुझसे दामन छुड़ा लिया है
और,,,और,,
तुम याद आ गई हालाकि
(वैसे तुम्हे भूला ही कब था )
और
मेरी उँगलियाँ सिरहाने रखे मोबाइल की
की पैड मचलने लगीं हैं
तुम्हे सुप्रभात
कहने को
तो सुमी - तुम्हरा दिन
शुभ हो
सूरज अपनी किरणों की सातों रंगो के
साथ इंद्रधनुष सा
तुम्हारे जीवन के फलक पे
चमकता रहे
और तुम किसी चिड़िया सी
उड़ती रहो
बुलबुल सा जाती रहो
गिलहरी सा मुहब्बत की डाल पे
चुक चूक करती रहो
और फिर मै किसी जाड़े की गुनगुनी धूप सा
तुम्हारी मुहब्बत का दुशाला ओढ़
चाय पियूँ
बॉलकनी पे बैठ
मुकेश इलाहाबादी,,,
19 Comments
Like
Comment
Share

No comments:

Post a Comment