Pages

Sunday 27 May 2012

परिंदों के शहर में करूं मै उड़ान की बातें

बैठे ठाले की तरंग -----------------

परिंदों  के  शहर  में  करूं  मै  उड़ान  की  बातें
दोस्तों की महफ़िल में दुनिया ज़हान की बातें

यायावरी  में काट दी,अपनी सारी ज़िन्दगी अब
क्यूँ    करूं  अपने घर  और  मकान  की  बातें

बहुत  उदास  उदास है  अपने  शहर  का  मौसम
  कुछ  देर  छेड़ें  हंसी  और  मुस्कान की बातें

यूँ  तो  लड़ने  झगड़ने  की अपनी  फितरत नहीं
गर बात पड़े तो करूं मै तीरों कमान की बातें

इंसान की शिराओं में बह रहा  है बाज़ार चार सूं
ग़ज़ल छोड़ क्यूँ करूं मै नफ़ा नुक्सान की बातें

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------

No comments:

Post a Comment