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Friday 30 May 2014

आसमाँ से बड़ी है

आसमाँ से बड़ी है
ख्वाब की नदी है

हम - तुम वही हैं
ज़माना भी वही है

बीच में मगर यह
दीवार क्यूँ खड़ी है

दरम्याँ दो रूहों के
हवस हंस रही है

हिज़्र के चार पल
सदियों से बड़ी है

साहिलों के बीच
नदी बह रही है

मुकेश इलाहाबादी -

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