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Monday 23 June 2014

अब इस शहर में बचा कुछ नहीं


अब इस शहर में बचा कुछ नहीं
रंज़िशो ग़म के सिवा कुछ नहीं

खुशनुमा मौसम हुआ करता था
अब कड़ी धूप के सिवा कुछ नहीं

सिर्फ मुट्ठी भर ख़ाक मिली मुझे,
तलाश गुहर की,मिला कुछ नहीं 

यूँ तो मैख़ाना था सामने ही मेरे,,
देखता ही रह गया पीया कुछ नहीं

बेवज़ह गुलशन ढूंढते हो मुकेश
उजड़े चमन के सिवा कुछ नहीं

मुकेश इलाहाबादी --------------

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