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Thursday 21 November 2019

सुगंध लिखता हूँ

मै
सुगंध
लिखता हूँ
कागज़ पे
तुम्हारी देह गंध उतर आती है
झरना लिखता हूँ
तुम्हारी हंसी
बिखर जाती है
आकाश लिखूं तो
तुम्हारा आँचल लहरा जाता है
इस तरह टुकड़े - टुकड़े मे
उतर आती हो मेरे
शब्दों के कैनवास मे
और मै तुम्हें महसूस कर लेता हूँ,
पूरा का पूरा
तुम्हें,
तुम्हारे पूरे वजूद के साथ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,

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