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Monday 24 February 2020

घरबार ही नहीं ख़ुद को भी बिसार दिया

घरबार
ही नहीं ख़ुद को भी
बिसार दिया
तुझे
सोचते - सोचते मैंने
उम्र गुजार दिया
तू पत्थर थी,
पत्थर है
पत्थर रहेगी,
बेवजह तुझे
इतना प्यार दिया
दिले गुलशन मे
तू फूल सा महकेगी
कुछ यही सोच
इस रिश्ते को
इतना विस्तार दिया
जब से
मालूम हुआ
तू नहीं लौटेगी
सोचता हूँ, बेवजह
तेरा इंतजार किया
मुकेश इलाहाबादी,,,,

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