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Monday 24 February 2020

हम अपनी ही धुन में जा रहे थे

हम अपनी ही धुन में जा रहे थे
तुम्हारा ही नाम गुनगुना रहे थे
तुम मुँह चिढ़ा के भाग गयी तो
तेरी इस अदा पे मुस्कुरा रहे थे
कागज़ पे बेतरतीब लकीरें नहीं
तेरा नाम लिख के मिटा रहे थे
लोग समझते रहे मुस्कुरा रहा हूँ
दरअसल अपना ग़म छुपा रहे थे
तेरी दोस्ती के लायक हो जाऊँ
ख़ुद को इस क़ाबिल बना रहे थे
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,

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