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Friday 15 May 2020

बहुत दिनों बाद हम चारों यार मिल बैठे हैं

बहुत
दिनों बाद हम चारों यार
मिल बैठे हैं
इनमे से एक
बहुत पहले मर चूका है
दूसरा हर रोज़
थोड़ा - थोड़ा मरता है
तीसरा अभी तो नहीं मरा है
पर उसे उम्मीद है
जल्दी ही उसकी भी मौत आने वाली है
और मै ,
मै शराब की चुस्की के साथ ये
सोच रहा हूँ
मै ज़िंदा हूँ या मर चूका हूँ
अगर ज़िंदा हूँ तो अभी तक मरा क्यूँ नहीं
और मर चूका हूँ तो ज़िंदा कैसे हूँ
और अगर ज़िंदा हूँ
तो मेरे मुँह में आवाज़ क्यूँ नहीं है
मेरी आँखों में पानी क्यूँ नहीं है
मेरे शब्दों में आग क्यूँ नहीं है
मेरे हाथ में ज़ुल्म के विरोध का झंडा क्यूँ नहीं है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

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