Pages

Friday 15 May 2020

अगर तुम ये सोचते हों कि

अगर
तुम ये सोचते हों कि
रात के खामोश अँधेरे में
झींगुरों की आवाज़ के बीच
तुम अपने कानो को सतर्क कर के
सुन लोगे सन्नाटे की आवाज़
तो तुम गलत हो
अगर तुम
सोचते हो तुम
अपने कानो को दोनों हाथो से बंद कर के
सुन लोगे सन्नाटे की आवाज़
तो तुम नहीं सुन पाओगे
सन्नाटे की आवाज़ सुनने के लिए
गुज़ारना होता है
एक बेहद और न ख़त्म होने वाली तकलीफ
की सुरंग से
मुकेश इलाहाबादी --------

No comments:

Post a Comment