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Sunday 27 December 2020

ताने बाने पे

 रात

और दिन
के ताने बाने पे
कसता हूं
तुम्हारी यादों के
मजबूत धागे
और बुनता हूं
यादों की
एक उदास चादर
जिसपे काढता हूँ
तुम्हारी हंसी के बेलबूटे
जिसे ओढ़ काट दूँगा
दिसंबर जनवरी
की सर्द रातें
मुकेश इलाहाबादी,,,

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