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Friday, 17 February 2012

ईद का मेला

दोस्तों इक्कीसवीं सदी की बेवफा, बेमुरव्वत हवा का असर सब पर इतना ज़बरदस्त है कि मासूम बच्चों के लिए बाज़ार हाट में मिलने वाले भोली-भाली भाव भंगिमाओं से जड़े,खिलौनों में भी सियासती नेता, आतंकी नायक उतर आए हैं. इतना ही नहीं इस पीढ़ी के बच्चे भी खिलौनों में नेता, बन्दूक, तोप और लादेन खोजते हैं लेकिन फिर भी इन विपरीत हवाओं के झोंको में कोई हामिद अपनी बूढ़ी दादी के लिए मेले जब में
चीमटा ढूँढता दिख जाता है, तो धरती पर संवेदनाओं के बचे रहने का एहसास होता है.

ईद का मेला

ईद के मेले में
खिलौनों की दुकान तो थी
पर इस बार मिट्टी का सिपाही
अपनी बन्दूक के साथ गायब था
और मिट्टी का भिश्ती भी
अपनी मशक के साथ वहाँ नहीं था
लिहाजा दुकानदार
प्लास्टिक के नेता, बन्दूक और तोप
लेकर हाज़िर था
हामिद के एक दोस्त ने बन्दूक खरीदी
वह लादेन बनना चाहता था
और दूसरे ने नेता का पुतला खरीदा
वह प्रधानमंत्री बनना चाहता था
पर हामिद अभी तक
लोहे का चीमटा ढूंढ रहा था
ताकि उसकी बूढ़ी दादी की
कांपती उंगलियाँ आग में न जलें

मुकेश इलाहाबादी


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