खुद को कभी तपा के देखो
खुद को कभी तपा के देखो
रुहानी लौ को जला के देखो
पैसा, घोडा गाडी पा के देखा
इन सब को अब गंवा के देखो
जीवन धारा मे तैर के देखा
इक दिन खुद को बहा के देखो
रिश्ते-नाते दुनियादारी है बेमानी
कभी खुद के भीतर खुदा को देखो
काशी काबा मथुरा जा के देखी
अब तो अपने अंदर जा के देखो
मुकेश इलाहाबादी ----------
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