कुछ कलियाँ भी मचल गयी होंगी
जब हथेलियों में चाँद उगा होगा
चांदनी बिछल बिछल गयी होगी
तेरी गर्म साँसों ने चेहरा छुआ क्या
सदियों की बर्फ पिघल गयी होगी
वह मेहंदी लगे पांवों से दौड़ी थी फिर
महबूब की बाहों में फिसल गयी होगी
मुद्दतों से हिज्र में उदास था चेहरा,
तुमसे मिलके तबियत बहल गयी होगी
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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